Sunday 2 September 2012

अमरता का एक रहस्य

किसी गाँव में एक वैद्य
रहता था जो यह दावा
करता था कि उसे अमरता
का रहस्य पता है। बहुत से
लोग उसके पास यह रहस्य
मालूम करने के लिए आते थे।
वैद्य उन सभी से कुछ धन ले
लेता और बदले में उनको कुछ
भी अगड़म-बगड़म बता
देता था। उनमें से कोई
यदि बाद में मर जाता था
तो वैद्य लोगों को यह कह
देता था कि उस व्यक्ति
को अमरता का रहस्य
ठीक से समझ में नहीं आया।
उस देश के राजा ने वैद्य के
बारे में सुना और उसको
लिवा लाने के लिए एक दूत
भेजा। किसी कारणवश दूत
को यात्रा में कुछ विलंब
हो गया और जब वह वैद्य
के घर पहुँचा तब उसे
समाचार मिला कि वैद्य
कुछ समय पहले चल बसा
था।
दूत डरते-डरते राजा के
महल वापस आया और उसने
राजा से कहा कि उसे
यात्रा में विलंब हो गया
था और इस बीच वैद्य की
मृत्यु हो गई। राजा यह
सुनकर बहुत क्रोधित हो
गया और उसने दूत को
प्राणदंड देने का आदेश दे
दिया।
च्वांग-त्जु ने दूत पर आए
संकट के बारे में सुना। वह
राजा के महल गया और
उससे बोला – “आपके दूत ने
पहुँचने में विलंब करके
गलती की पर आपने भी उसे
वहां भेजने की गलती की।
वैद्य की मृत्यु यह सिद्ध
करती है की उसे अमरता के
किसी भी रहस्य का पता
नहीं था अन्यथा उसकी
मृत्यु ही नहीं हुई होती।
रहस्य सिर्फ़ यही है कि
ऐसा कोई भी रहस्य नहीं
है। केवल अज्ञानी ही ऐसी
बातों पर भरोसा कर
बैठते हैं।“
राजा ने दूत को
क्षमादान दे दिया और
मरने-जीने की चिंता से
मुक्त होकर जीवन व्यतीत
करने लगा।

सफलता का रहस्य





success

एक बार एक
नौजवान लड़के ने
सुकरात से
पूछा कि सफलता का रहस्य
क्या है?
सुकरात ने उस लड़के
से कहा कि तुम कल
मुझे नदी के किनारे
मिलो.वो मिले.
फिर सुकरात ने
नौजवान से उनके
साथ नदी की तरफ
बढ़ने को कहा.और
जब आगे बढ़ते-बढ़ते
पानी गले तक पहुँच
गया, तभी अचानक
सुकरात ने उस
लड़के का सर पकड़ के
पानी में
डुबो दिया.
लड़का बाहर
निकलने के लिए
संघर्ष करने लगा ,
लेकिन सुकरात
ताकतवर थे और उसे
तब तक डुबोये रखे
जब तक
की वो नीला नहीं पड़ने
लगा. फिर सुकरात
ने उसका सर
पानी से बाहर
निकाल दिया और
बाहर निकलते
ही जो चीज उस
लड़के ने सबसे पहले
की वो थी हाँफते-
हाँफते तेजी से सांस
लेना.
सुकरात ने पूछा ,”
जब तुम वहाँ थे
तो तुम सबसे
ज्यादा क्या चाहते
थे?”
लड़के ने उत्तर
दिया,”सांस लेना”
सुकरात ने कहा,”
यही सफलता का रहस्य
है. जब तुम
सफलता को उतनी ही बुरी तरह
से चाहोगे
जितना की तुम
सांस लेना चाहते थे
तो वो तुम्हे मिल
जाएगी” इसके
आलावा और कोई
रहस्य नहीं है.



Wednesday 11 July 2012

समस्या का हल

एक दिए एक
स्त्री स्त्रीरोग
विशेषज्ञ के पास के
गई और बोली,
" डाक्टर मैँ एक
गंभीर समस्या मेँ हु
और मेँ आपकी मदद
चाहती हु.
मेरा पहला लडका एक
वर्ष का है और मेँ
दुसरी बार
गर्भवती हु.
और मैँ दो बच्चो के
बीच अन्तर
चाहती हु.."
डाक्टर ने कहा ,"
ठीक है, तो मेँ
आपकी क्या सहायता कर
सकता हु?"
तो वो स्त्री बोली,"
मैँ यह चाहती हू
कि इस गर्भ
को गिराने मेँ
मेरी मदद करे."
डाक्टर ने
थोडा सोचा और
बोला,
"मुझे लगता है कि मेरे
पास एक और सरल
रास्ता है
जो आपकी मुश्किल
कोहल कर देगा.
वो स्त्री बहुत खुश
हुई..
डाक्टर आगे बोला,
" हम एक काम करते है
आपको दो लडको के
बीच अन्तर चाहिए
ना ??
तो पहले लडके
को मार देते है जिससे
इस अजन्मे बच्चे
को जन्म दे सके और
आपकी समस्या का हल
भी हो जाएगा.
वैसे भी हमको एक
बच्चे को मारना है
तो पहले वाले
को ही मार देते
हैना.?"
तो वो स्त्री तुरंत
बोली,"
ना ना डाक्टर..!!!
लडके
की हत्या करना गुनाह
है पाप है."
डाक्टर तुरंत बोला,
" सहमत, पहले
कि हत्या करो या अभी जो जन्मा नही उसकी की हत्या करो दोनो गुनाह
है पाप है."
यह बात उस
स्त्री को समझ आ
गई..
क्या आपको समझ मेँ
आयी ?
अगर हा आई
हो तो plz SHARE
करके दुसरे
लोगो को भी समझाने
मे मदद करे.

Monday 21 May 2012

ताजमहल

बी.बी.सी.
कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ
सत्य..........
कभी मत
कहो कि.........
यह एक
मकबरा है..........
प्रो. ओक., जोर देकर
कहते हैं कि हिंदू
मंदिरों में
ही पूजा एवं
धार्मिक
संस्कारों के लिए
भगवान् शिव
की मूर्ति,त्रिशूल,कलश
और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग
की जाती हैं.......
=>ताज महल के
सम्बन्ध में यह आम
किवदंत्ती प्रचलित
है कि ताजमहल के
अन्दर मुमताज
की कब्र पर सदैव बूँद
बूँद कर
पानी टपकता रहता है,,
यदि यह सत्य है
तो पूरे विश्व मे
किसी किभी कब्र
पर बूँद बूँद कर
पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक
हिंदू शिव मन्दिर में
ही शिवलिंग पर बूँद
बूँद कर
पानी टपकाने
की व्यवस्था की जाती है,फ़िर
ताजमहल (मकबरे) में
बूँद बूँद कर
पानी टपकाने
का क्या मतलब....????
राजनीतिक
भर्त्सना के डर से
इंदिरा सरकार ने
ओक की सभी पुस्तकें
स्टोर्स से वापस ले
लीं थीं और इन
पुस्तकों के प्रथम
संस्करण को छापने
वाले
संपादकों को भयंकर
परिणाम भुगत लेने
की धमकियां भी दी गईं
थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के
अनुसंधान को ग़लत
या सिद्ध करने
का केवल एक
ही रास्ता है
कि वर्तमान केन्द्र
सरकार बंद
कमरों को संयुक्त
राष्ट्र के
पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और
अंतर्राष्ट्रीय
विशेषज्ञों को छानबीन
करने दे ....
1.प्रवेश द्वार पर
बने लाल कमल........
2.पीछे
की खिड़कियाँ और
बंद दरवाज
3.विशेषतः वैदिक
शैली मे निर्मित
गलियारा.....
4.मकबरे के पास
संगीतालय........एक
विरोधाभास.........
5.ऊपरी तल पर
स्थित एक बंद
कमरा.........
6.निचले तल पर
स्थित
संगमरमरी कमरों का समूह.........
7.दीवारों पर बने
हुए फूल......जिनमे
छुपा हुआ है ओम्
( ॐ ) ....
8.निचले तल पर जाने
के लिए सीढियां........
9.कमरों के मध्य
300फीट
लंबा गलियारा..
10.निचले तल
के२२गुप्त कमरों मे
सेएककमरा...
11.२२ गुप्त कमरा
13.ईंटों से बंद
किया गया विशाल
रोशनदान
14.दरवाजों में
लगी गुप्त
दीवार,जिससे अन्य
कमरों का सम्पर्क
था.....
15.बहुत से
साक्ष्यों को छुपाने
के लिए,गुप्त ईंटों से
बंद
किया गया दरवाजा......
16.बुरहानपुर मध्य
प्रदेश मे स्थित महल
जहाँ मुमताज-उल-
ज़मानी कि मृत्यु हुई
थी.......
अब कृपया इसे
पढ़ें ......... प्रो.पी.
एन. ओक. को छोड़ कर
किसी ने कभी भी इस
कथन
को चुनौती नही दी कि........"ताजमहल
शाहजहाँ ने
बनवाया था"
प्रो.ओक.
अपनी पुस्तक "TAJ
MAHAL - THE TRUE
STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास
रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस
धोखे में है कि खूबसूरत
इमारत ताजमहल
को मुग़ल बादशाह
शाहजहाँ ने
बनवाया था.....
ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ
से ही बेगम मुमताज
का मकबरा न
होकर,एक हिंदू
प्राचीन शिव
मन्दिर है जिसे तब
तेजो महालय
कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के
दौरान ओक ने
खोजा कि इस शिव
मन्दिर
को शाहजहाँ ने
जयपुर के महाराज
जयसिंह से अवैध
तरीके से छीन
लिया था और इस पर
अपना कब्ज़ा कर
लिया था,,
=>शाहजहाँ के
दरबारी लेखक
"मुल्ला अब्दुल हमीद
लाहौरी "ने अपने
"बादशाहनामा" में
मुग़ल शासक
बादशाह
का सम्पूर्ण वृतांत
1000 से
ज़्यादा पृष्ठों मे
लिखा है,,जिसके खंड
एक के पृष्ठ 402 और
403 पर इस बात
का उल्लेख है कि,
शाहजहाँ की बेगम
मुमताज-उल-ज़मान
ी जिसे मृत्यु के बाद,
बुरहानपुर मध्य
प्रदेश में अस्थाई
तौर पर
दफना दिया गया था और
इसके ०६ माह
बाद,तारीख़ 15
ज़मदी-उल- अउवल
दिन
शुक्रवार,को अकबराबाद
आगरा लाया गया फ़िर
उसे
महाराजा जयसिंह
से लिए गए,आगरा में
स्थित एक
असाधारण रूप से
सुंदर और शानदार
भवन (इमारते
आलीशान) मे
पुनः दफनाया गया,लाहौरी के
अनुसार
राजा जयसिंह अपने
पुरखों कि इस
आली मंजिल से बेहद
प्यार करते थे ,पर
बादशाह के दबाव मे
वह इसे देने के लिए
तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के
लिए यहाँ ये
बताना अत्यन्त
आवश्यक है कि जयपुर
के पूर्व महाराज के
गुप्त संग्रह में वे
दोनो आदेश अभी तक
रक्खे हुए हैं
जो शाहजहाँ द्वारा ताज
भवन समर्पित करने
के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए
थे.......
=>यह सभी जानते हैं
कि मुस्लिम
शासकों के समय
प्रायः मृत
दरबारियों और
राजघरानों के
लोगों को दफनाने के
लिए, छीनकर कब्जे में
लिए गए मंदिरों और
भवनों का प्रयोग
किया जाता था ,
उदाहरनार्थ
हुमायूँ, अकबर,
एतमाउददौला और
सफदर जंग ऐसे
ही भवनों मे दफनाये
गए हैं ....
=>प्रो. ओक कि खोज
ताजमहल के नाम से
प्रारम्भ
होती है---------
="महल" शब्द,
अफगानिस्तान से
लेकर
अल्जीरिया तक
किसी भी मुस्लिम
देश में
भवनों के लिए
प्रयोग
नही किया जाता......यहाँ यह
व्याख्या करना कि महल
शब्द मुमताज महल से
लिया गया है......वह
कम से कम दो प्रकार
से तर्कहीन
है---------
पहला -----
शाहजहाँ कि पत्नी का नाम
मुमताज महल
कभी नही था,,,बल्कि उसका नाम
मुमताज-उल-ज़मान
ी था ...
और दूसरा-----
किसी भवन
का नामकरण
किसी महिला के
नाम के आधार पर
रखने के लिए केवल
अन्तिम आधे भाग
(ताज)का ही प्रयोग
किया जाए और
प्रथम अर्ध भाग
(मुम) को छोड़
दिया जाए,,,यह
समझ से परे है...
प्रो.ओक दावा करते
हैं कि,ताजमहल नाम
तेजो महालय
(भगवान शिव
का महल)
का बिगड़ा हुआ
संस्करण है, साथ
ही साथ ओक कहते हैं
कि----
मुमताज और
शाहजहाँ कि प्रेम
कहानी,चापलूस
इतिहासकारों की भयंकर
भूल और लापरवाह
पुरातत्वविदों की सफ़ाई
से स्वयं गढ़ी गई
कोरी अफवाह
मात्र है
क्योंकि शाहजहाँ के
समय का कम से कम
एक शासकीय
अभिलेख इस प्रेम
कहानी की पुष्टि नही करता है.....
इसके अतिरिक्त
बहुत से प्रमाण ओक के
कथन
का प्रत्यक्षतः समर्थन
कर रहे हैं......
तेजो महालय
(ताजमहल) मुग़ल
बादशाह के युग से
पहले बना था और यह
भगवान् शिव
को समर्पित
था तथा आगरा के
राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----
==>न्यूयार्क के
पुरातत्वविद प्रो.
मर्विन मिलर ने
ताज के
यमुना की तरफ़ के
दरवाजे
की लकड़ी की कार्बन
डेटिंग के आधार पर
1985 में यह सिद्ध
किया कि यह
दरवाजा सन् 1359 के
आसपास अर्थात्
शाहजहाँ के काल से
लगभग 300 वर्ष
पुराना है...
==>मुमताज कि मृत्यु
जिस वर्ष (1631) में
हुई थी उसी वर्ष के
अंग्रेज भ्रमण
कर्ता पीटर
मुंडी का लेख
भी इसका समर्थन
करता है
कि ताजमहल मुग़ल
बादशाह के पहले
का एक
अति महत्वपूर्ण
भवन था......
==>यूरोपियन
यात्री जॉन
अल्बर्ट
मैनडेल्स्लो ने सन्
1638 (मुमताज
कि मृत्यु के 07 साल
बाद) में आगरा भ्रमण
किया और इस शहर के
सम्पूर्ण जीवन
वृत्तांत का वर्णन
किया,,परन्तु उसने
ताज के बनने का कोई
भी सन्दर्भ
नही प्रस्तुत
किया,जबकि भ्रांतियों मे
यह कहा जाता है
कि ताज
का निर्माण कार्य
1631 से 1651 तक
जोर शोर से चल
रहा था......
==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स
बर्निअर एम.डी.
जो औरंगजेब
द्वारा गद्दीनशीन
होने के समय भारत
आया था और लगभग
दस साल यहाँ रहा,के
लिखित विवरण से
पता चलता है
कि,औरंगजेब के शासन
के समय यह झूठ
फैलाया जाना शुरू
किया गया कि ताजमहल
शाहजहाँ ने
बनवाया था.......
प्रो. ओक. बहुत
सी आकृतियों और
शिल्प
सम्बन्धी असंगताओं
को इंगित करते हैं
जो इस विश्वास
का समर्थन करते हैं
कि,ताजमहल
विशाल मकबरा न
होकर
विशेषतः हिंदू शिव
मन्दिर है.......
आज भी ताजमहल के
बहुत से कमरे
शाहजहाँ के काल से
बंद पड़े हैं,जो आम
जनता की पहुँच से परे
हैं ...................... प्रो.
ओक., जोर देकर कहते
हैं कि हिंदू मंदिरों में
ही पूजा एवं
धार्मिक
संस्कारों के लिए
भगवान् शिव
की मूर्ति,त्रिशूल,कलश
और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग
की जाती हैं.......
==>ताज महल के
सम्बन्ध में यह आम
किवदंत्ती प्रचलित
है कि ताजमहल के
अन्दर मुमताज
की कब्र पर सदैव बूँद
बूँद कर
पानी टपकता रहता है,,
यदि यह सत्य है
तो पूरे विश्व मे
किसी किभी कब्र
पर बूँद बूँद कर
पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक
हिंदू शिव मन्दिर में
ही शिवलिंग पर बूँद
बूँद कर
पानी टपकाने
की व्यवस्था की जाती है,फ़िर
ताजमहल (मकबरे) में
बूँद बूँद कर
पानी टपकाने
का क्या मतलब....????
राजनीतिक
भर्त्सना के डर से
इंदिरा सरकार ने
ओक की सभी पुस्तकें
स्टोर्स से वापस ले
लीं थीं और इन
पुस्तकों के प्रथम
संस्करण को छापने
वाले
संपादकों को भयंकर
परिणाम भुगत लेने
की धमकियां भी दी गईं
थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के
अनुसंधान को ग़लत
या सिद्ध करने
का केवल एक
ही रास्ता है
कि वर्तमान केन्द्र
सरकार बंद
कमरों को संयुक्त
राष्ट्र के
पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और
अंतर्राष्ट्रीय
विशेषज्ञों को छानबीन
करने दे ....
ज़रा सोचिये....!!!!!!
कि यदि ओक
का अनुसंधान
पूर्णतयः सत्य है
तो किसी देशी राजा के
बनवाए गए
संगमरमरी आकर्षण
वाले
खूबसूरत,शानदार
एवं विश्व के महान
आश्चर्यों में से एक
भवन, "तेजो महालय"
को बनवाने का श्रेय
बाहर से आए मुग़ल
बादशाह
शाहजहाँ को क्यों......?????
तथा...... इससे
जुड़ी तमाम
यादों का सम्बन्ध
मुमताज-उल-ज़मान
ी से क्यों........???????
आंसू टपक रहे हैं,
हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं
हर खासों आम से.....
अपनों ने
बुना था हमें,कुदरत के
काम से,,,,
फ़िर
भी यहाँ जिंदा हैं हम
गैबी.बी.सी.
कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ
सत्य..........
कभी मत
कहो कि.........
यह एक
मकबरा है..........
प्रो. ओक., जोर देकर
कहते हैं कि हिंदू
मंदिरों में
ही पूजा एवं
धार्मिक
संस्कारों के लिए
भगवान् शिव
की मूर्ति,त्रिशूल,कलश
और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग
की जाती हैं.......
=>ताज महल के
सम्बन्ध में यह आम
किवदंत्ती प्रचलित
है कि ताजमहल के
अन्दर मुमताज
की कब्र पर सदैव बूँद
बूँद कर
पानी टपकता रहता है,,
यदि यह सत्य है
तो पूरे विश्व मे
किसी किभी कब्र
पर बूँद बूँद कर
पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक
हिंदू शिव मन्दिर में
ही शिवलिंग पर बूँद
बूँद कर
पानी टपकाने
की व्यवस्था की जाती है,फ़िर
ताजमहल (मकबरे) में
बूँद बूँद कर
पानी टपकाने
का क्या मतलब....????
राजनीतिक
भर्त्सना के डर से
इंदिरा सरकार ने
ओक की सभी पुस्तकें
स्टोर्स से वापस ले
लीं थीं और इन
पुस्तकों के प्रथम
संस्करण को छापने
वाले
संपादकों को भयंकर
परिणाम भुगत लेने
की धमकियां भी दी गईं
थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के
अनुसंधान को ग़लत
या सिद्ध करने
का केवल एक
ही रास्ता है
कि वर्तमान केन्द्र
सरकार बंद
कमरों को संयुक्त
राष्ट्र के
पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और
अंतर्राष्ट्रीय
विशेषज्ञों को छानबीन
करने दे ....
1.प्रवेश द्वार पर
बने लाल कमल........
2.पीछे
की खिड़कियाँ और
बंद दरवाज
3.विशेषतः वैदिक
शैली मे निर्मित
गलियारा.....
4.मकबरे के पास
संगीतालय........एक
विरोधाभास.........
5.ऊपरी तल पर
स्थित एक बंद
कमरा.........
6.निचले तल पर
स्थित
संगमरमरी कमरों का समूह.........
7.दीवारों पर बने
हुए फूल......जिनमे
छुपा हुआ है ओम्
( ॐ ) ....
8.निचले तल पर जाने
के लिए सीढियां........
9.कमरों के मध्य
300फीट
लंबा गलियारा..
10.निचले तल
के२२गुप्त कमरों मे
सेएककमरा...
11.२२ गुप्त कमरा
13.ईंटों से बंद
किया गया विशाल
रोशनदान
14.दरवाजों में
लगी गुप्त
दीवार,जिससे अन्य
कमरों का सम्पर्क
था.....
15.बहुत से
साक्ष्यों को छुपाने
के लिए,गुप्त ईंटों से
बंद
किया गया दरवाजा......
16.बुरहानपुर मध्य
प्रदेश मे स्थित महल
जहाँ मुमताज-उल-
ज़मानी कि मृत्यु हुई
थी.......
अब कृपया इसे
पढ़ें ......... प्रो.पी.
एन. ओक. को छोड़ कर
किसी ने कभी भी इस
कथन
को चुनौती नही दी कि........"ताजमहल
शाहजहाँ ने
बनवाया था"
प्रो.ओक.
अपनी पुस्तक "TAJ
MAHAL - THE TRUE
STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास
रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस
धोखे में है कि खूबसूरत
इमारत ताजमहल
को मुग़ल बादशाह
शाहजहाँ ने
बनवाया था.....
ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ
से ही बेगम मुमताज
का मकबरा न
होकर,एक हिंदू
प्राचीन शिव
मन्दिर है जिसे तब
तेजो महालय
कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के
दौरान ओक ने
खोजा कि इस शिव
मन्दिर
को शाहजहाँ ने
जयपुर के महाराज
जयसिंह से अवैध
तरीके से छीन
लिया था और इस पर
अपना कब्ज़ा कर
लिया था,,
=>शाहजहाँ के
दरबारी लेखक
"मुल्ला अब्दुल हमीद
लाहौरी "ने अपने
"बादशाहनामा" में
मुग़ल शासक
बादशाह
का सम्पूर्ण वृतांत
1000 से
ज़्यादा पृष्ठों मे
लिखा है,,जिसके खंड
एक के पृष्ठ 402 और
403 पर इस बात
का उल्लेख है कि,
शाहजहाँ की बेगम
मुमताज-उल-ज़मान
ी जिसे मृत्यु के बाद,
बुरहानपुर मध्य
प्रदेश में अस्थाई
तौर पर
दफना दिया गया था और
इसके ०६ माह
बाद,तारीख़ 15
ज़मदी-उल- अउवल
दिन
शुक्रवार,को अकबराबाद
आगरा लाया गया फ़िर
उसे
महाराजा जयसिंह
से लिए गए,आगरा में
स्थित एक
असाधारण रूप से
सुंदर और शानदार
भवन (इमारते
आलीशान) मे
पुनः दफनाया गया,लाहौरी के
अनुसार
राजा जयसिंह अपने
पुरखों कि इस
आली मंजिल से बेहद
प्यार करते थे ,पर
बादशाह के दबाव मे
वह इसे देने के लिए
तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के
लिए यहाँ ये
बताना अत्यन्त
आवश्यक है कि जयपुर
के पूर्व महाराज के
गुप्त संग्रह में वे
दोनो आदेश अभी तक
रक्खे हुए हैं
जो शाहजहाँ द्वारा ताज
भवन समर्पित करने
के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए
थे.......
=>यह सभी जानते हैं
कि मुस्लिम
शासकों के समय
प्रायः मृत
दरबारियों और
राजघरानों के
लोगों को दफनाने के
लिए, छीनकर कब्जे में
लिए गए मंदिरों और
भवनों का प्रयोग
किया जाता था ,
उदाहरनार्थ
हुमायूँ, अकबर,
एतमाउददौला और
सफदर जंग ऐसे
ही भवनों मे दफनाये
गए हैं ....
=>प्रो. ओक कि खोज
ताजमहल के नाम से
प्रारम्भ
होती है---------
="महल" शब्द,
अफगानिस्तान से
लेकर
अल्जीरिया तक
किसी भी मुस्लिम
देश में
भवनों के लिए
प्रयोग
नही किया जाता......यहाँ यह
व्याख्या करना कि महल
शब्द मुमताज महल से
लिया गया है......वह
कम से कम दो प्रकार
से तर्कहीन
है---------
पहला -----
शाहजहाँ कि पत्नी का नाम
मुमताज महल
कभी नही था,,,बल्कि उसका नाम
मुमताज-उल-ज़मान
ी था ...
और दूसरा-----
किसी भवन
का नामकरण
किसी महिला के
नाम के आधार पर
रखने के लिए केवल
अन्तिम आधे भाग
(ताज)का ही प्रयोग
किया जाए और
प्रथम अर्ध भाग
(मुम) को छोड़
दिया जाए,,,यह
समझ से परे है...
प्रो.ओक दावा करते
हैं कि,ताजमहल नाम
तेजो महालय
(भगवान शिव
का महल)
का बिगड़ा हुआ
संस्करण है, साथ
ही साथ ओक कहते हैं
कि----
मुमताज और
शाहजहाँ कि प्रेम
कहानी,चापलूस
इतिहासकारों की भयंकर
भूल और लापरवाह
पुरातत्वविदों की सफ़ाई
से स्वयं गढ़ी गई
कोरी अफवाह
मात्र है
क्योंकि शाहजहाँ के
समय का कम से कम
एक शासकीय
अभिलेख इस प्रेम
कहानी की पुष्टि नही करता है.....
इसके अतिरिक्त
बहुत से प्रमाण ओक के
कथन
का प्रत्यक्षतः समर्थन
कर रहे हैं......
तेजो महालय
(ताजमहल) मुग़ल
बादशाह के युग से
पहले बना था और यह
भगवान् शिव
को समर्पित
था तथा आगरा के
राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----
==>न्यूयार्क के
पुरातत्वविद प्रो.
मर्विन मिलर ने
ताज के
यमुना की तरफ़ के
दरवाजे
की लकड़ी की कार्बन
डेटिंग के आधार पर
1985 में यह सिद्ध
किया कि यह
दरवाजा सन् 1359 के
आसपास अर्थात्
शाहजहाँ के काल से
लगभग 300 वर्ष
पुराना है...
==>मुमताज कि मृत्यु
जिस वर्ष (1631) में
हुई थी उसी वर्ष के
अंग्रेज भ्रमण
कर्ता पीटर
मुंडी का लेख
भी इसका समर्थन
करता है
कि ताजमहल मुग़ल
बादशाह के पहले
का एक
अति महत्वपूर्ण
भवन था......
==>यूरोपियन
यात्री जॉन
अल्बर्ट
मैनडेल्स्लो ने सन्
1638 (मुमताज
कि मृत्यु के 07 साल
बाद) में आगरा भ्रमण
किया और इस शहर के
सम्पूर्ण जीवन
वृत्तांत का वर्णन
किया,,परन्तु उसने
ताज के बनने का कोई
भी सन्दर्भ
नही प्रस्तुत
किया,जबकि भ्रांतियों मे
यह कहा जाता है
कि ताज
का निर्माण कार्य
1631 से 1651 तक
जोर शोर से चल
रहा था......
==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स
बर्निअर एम.डी.
जो औरंगजेब
द्वारा गद्दीनशीन
होने के समय भारत
आया था और लगभग
दस साल यहाँ रहा,के
लिखित विवरण से
पता चलता है
कि,औरंगजेब के शासन
के समय यह झूठ
फैलाया जाना शुरू
किया गया कि ताजमहल
शाहजहाँ ने
बनवाया था.......
प्रो. ओक. बहुत
सी आकृतियों और
शिल्प
सम्बन्धी असंगताओं
को इंगित करते हैं
जो इस विश्वास
का समर्थन करते हैं
कि,ताजमहल
विशाल मकबरा न
होकर
विशेषतः हिंदू शिव
मन्दिर है.......
आज भी ताजमहल के
बहुत से कमरे
शाहजहाँ के काल से
बंद पड़े हैं,जो आम
जनता की पहुँच से परे
हैं ...................... प्रो.
ओक., जोर देकर कहते
हैं कि हिंदू मंदिरों में
ही पूजा एवं
धार्मिक
संस्कारों के लिए
भगवान् शिव
की मूर्ति,त्रिशूल,कलश
और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग
की जाती हैं.......
==>ताज महल के
सम्बन्ध में यह आम
किवदंत्ती प्रचलित
है कि ताजमहल के
अन्दर मुमताज
की कब्र पर सदैव बूँद
बूँद कर
पानी टपकता रहता है,,
यदि यह सत्य है
तो पूरे विश्व मे
किसी किभी कब्र
पर बूँद बूँद कर
पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक
हिंदू शिव मन्दिर में
ही शिवलिंग पर बूँद
बूँद कर
पानी टपकाने
की व्यवस्था की जाती है,फ़िर
ताजमहल (मकबरे) में
बूँद बूँद कर
पानी टपकाने
का क्या मतलब....????
राजनीतिक
भर्त्सना के डर से
इंदिरा सरकार ने
ओक की सभी पुस्तकें
स्टोर्स से वापस ले
लीं थीं और इन
पुस्तकों के प्रथम
संस्करण को छापने
वाले
संपादकों को भयंकर
परिणाम भुगत लेने
की धमकियां भी दी गईं
थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के
अनुसंधान को ग़लत
या सिद्ध करने
का केवल एक
ही रास्ता है
कि वर्तमान केन्द्र
सरकार बंद
कमरों को संयुक्त
राष्ट्र के
पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और
अंतर्राष्ट्रीय
विशेषज्ञों को छानबीन
करने दे ....
ज़रा सोचिये....!!!!!!
कि यदि ओक
का अनुसंधान
पूर्णतयः सत्य है
तो किसी देशी राजा के
बनवाए गए
संगमरमरी आकर्षण
वाले
खूबसूरत,शानदार
एवं विश्व के महान
आश्चर्यों में से एक
भवन, "तेजो महालय"
को बनवाने का श्रेय
बाहर से आए मुग़ल
बादशाह
शाहजहाँ को क्यों......?????
तथा...... इससे
जुड़ी तमाम
यादों का सम्बन्ध
मुमताज-उल-ज़मान
ी से क्यों........???????
आंसू टपक रहे हैं,
हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं
हर खासों आम से.....
अपनों ने
बुना था हमें,कुदरत के
काम से,,,,
फ़िर
भी यहाँ जिंदा हैं हम
गैरों के नाम से......

Saturday 31 December 2011

मैकू(मुंशी प्रेमचन्द)

कादिर और मैकू
ताड़ीखाने के
सामने पहूँचे;
तो वहॉँ कॉँग्रेस के
वालंटियर
झंडा लिए खड़े नजर
आये। दरवाजे के
इधर-उधर
हजारों दर्शक खड़े
थे। शाम का वक्त
था। इस वक्त
गली में
पियक्कड़ों के
सिवा और कोई न
आता था। भले
आदमी इधर से
निकलते झिझकते।
पियक्कड़ों की
छोटी-
छोटी टोलियॉँ
आती-
जाती रहती थीं।
दो-चार वेश्याऍं
दूकान के सामने
खड़ी नजर
आती थीं। आज यह
भीड़-भाड़ देख कर
मैकू ने कहा—
बड़ी भीड़ है बे,
कोई दो-तीन
सौ आदमी होंगे।
कादिर ने
मुस्करा कर
कहा—भीड़ देख
कर डर गये क्या?
यह सब हुर्र
हो जायँगे, एक
भी न टिकेगा। यह
लोग तमाशा देखने
आये हैं,
लाठियॉँ खाने
नहीं आये हैं।
मैकू ने संदेह के स्वर
में कहा—पुलिस के
सिपाही भी बैठे
हैं। ठीकेदार ने
तो कहा थ, पुलिस
न बोलेगी।
कादिर—हॉँ बे ,
पुलिस न बोलेगी,
तेरी नानी क्यों
मरी जा रही है ।
पुलिस
वहॉँ बोलती है,
जहॉँ चार पैसे
मिलते है
या जहॉँ कोई औरत
का मामला होता
है। ऐसी बेफजूल
बातों में पुलिस
नहीं पड़ती।
पुलिस तो और शह
दे रही है।
ठीकेदार से साल में
सैकड़ों रुपये मिलते
हैं। पुलिस इस वक्त
उसकी मदद न
करेगी तो कब
करेगी?
मैकू—चलो, आज दस
हमारे भी सीधे
हुए। मुफ्त में पियेंगे
वह अलग, मगर हम
सुनते हैं,
कॉँग्रेसवालों में
बड़े-बड़े मालदार
लोग शरीक है। वह
कहीं हम लोगों से
कसर निकालें
तो बुरा होगा।
कादिर—अबे,
कोई कसर-वसर
नहीं निकालेगा,
तेरी जान
क्यों निकल
रही है?
कॉँग्रेसवाले
किसी पर हाथ
नहीं उठाते, चाहे
कोई उन्हें मार
ही डाले।
नहीं तो उस दिन
जुलूस में दस-बारह
चौकीदारों की
मजाल थी कि दस
हजार
आदमियों को पीट
कर रख देते। चार
तो वही ठंडे
हो गये थे, मगर एक
ने हाथ
नहीं उठाया।
इनके
जो महात्मा हैं,
वह बड़े
भारी फकीर है !
उनका हुक्म है
कि चुपके से मार
खा लो, लड़ाई मत
करो।
यों बातें करते-
करते
दोनों ताड़ीखाने
के द्वार पर पहुँच
गये। एक स्वयंसेवक
हाथ जोड़कर
सामने आ गया और
बोला –भाई
साहब, आपके मजहब
में ताड़ी हराम है।
मैकू ने बात
का जवाब चॉँटे से
दिया ।
ऐसा तमाचा
मारा कि
स्वयंसेवक
की ऑंखों में खून आ
गया। ऐसा मालूम
होता था,
गिरा चाहता है।
दूसरे स्वयंसेवक ने
दौड़कर उसे
सँभाला।
पॉँचों उँगलियो
का रक्तमय
प्रतिबिम्ब झलक
रहा था।
मगर वालंटियर
तमाचा खा कर
भी अपने स्थान पर
खड़ा रहा। मैकू ने
कहा—अब
हटता है कि और
लेगा?
स्वयंसेवक ने
नम्रता से कहा—
अगर
आपकी यही इच्छा
है, तो सिर सामने
किये हुए हूँ।
जितना चाहिए,
मार लीजिए।
मगर अंदर न
जाइए।
यह कहता हुआ वह
मैकू के सामने बैठ
गया ।
मैकू ने स्वयंसेवक के
चेहरे पर निगाह
डाली।
उसकी पॉचों
उँगलियों के
निशान झलक रहे
थे। मैकू ने इसके पहले
अपनी लाठी से टूटे
हुए कितने ही सिर
देखे थे, पर आज की-
सी ग्लानी उसे
कभी न हुई थी। वह
पाँचों उँगलियों के
निशान
किसी पंचशूल
की भॉति उसके
ह्रदय में चुभ रहे थे।
कादिर
चौकीदारों के
पास खड़ा सिगरेट
पीने लगा।
वहीं खड़े-खड़े
बोला—अब,
खड़ा क्या देखता है
, लगा कसके एक
हाथ।
मैकू ने स्वयंसेवक से
कहा—तुम उठ
जाओ, मुझे अन्दर
जाने दो।
‘आप
मेरी छाती पर
पॉँव रख कर चले
जा सकते हैं।’
‘मैं कहता हूँ, उठ
जाओ, मै अन्दर
ताड़ी न पीउँगा ,
एक दूसरा ही काम
है।’
उसने यह बात कुछ
इस दृढ़ता से
कही कि स्वयंसेवक
उठकर रास्ते से हट
गया। मैकू ने
मुस्करा कर
उसकी ओर ताका ।
स्वयंसेवक ने फिर
हाथ जोड़कर
कहा—
अपना वादा भूल न
जाना।
एक चौकीदार
बोला—लात के
आगे भूत भागता है,
एक ही तमाचे में
ठीक हो गया !
कादिर ने कहा—
यह
तमाचा बच्चा को
जन्म-भर याद
रहेगा। मैकू के
तमाचे सह
लेना मामूली काम
नहीं है।
चौकीदार—आज
ऐसा ठोंको इन
सबों को कि फिर
इधर आने को नाम
न लें ।
कादिर—खुदा ने
चाहा, तो फिर
इधर आयेंगे
भी नहीं। मगर हैं
सब बड़े हिम्मती।
जान को हथेली पर
लिए फिरते हैं।
2
मैकू भीतर पहुँचा,
तो ठीकेदार ने
स्वागत किया –
आओ मैकू मियॉँ ! एक
ही तमाचा लगा
कर क्यो रह गये?
एक तमाचे
का भला इन पर
क्या असर होगा?
बड़े लतखोर हैं सब।
कितना ही पीटो,
असर
ही नहीं होता।
बस आज सबों के
हाथ-पॉँव तोड़
दो; फिर इधर न
आयें ।
मैकू—तो क्या और
न आयेंगें?
ठीकेदार—फिर
आते सबों की नानी
मरेगी।
मैकू—और
जो कहीं इन
तमाशा देखनेवालों
ने मेरे ऊपर डंडे
चलाये तो!
ठीकेदार—
तो पुलिस
उनको मार
भगायेगी। एक
झड़प में मैदान साफ
हो जाएगा। लो,
जब तक एकाध
बोतल पी लो। मैं
तो आज मुफ्त
की पिला रहा हूँ।
मैकू—क्या इन
ग्राहकों को भी
मुफ्त ?
ठीकेदार –
क्या करता , कोई
आता ही न था।
सुना कि मुफ्त
मिलेगी तो सब धँस
पड़े।
मैकू—मैं तो आज न
पीऊँगा।
ठीकेदार—क्यों?
तुम्हारे लिए
तो आज
ताजी ताड़ी
मँगवायी है।
मैकू—यों ही , आज
पीने
की इच्छा नहीं है।
लाओ, कोई
लकड़ी निकालो,
हाथ से मारते
नहीं बनता ।
ठीकेदार ने लपक
कर एक
मोटा सोंटा मैकू के
हाथ में दे दिया,
और डंडेबाजी का
तमाशा देखने के
लिए द्वार पर
खड़ा हो गया ।
मैकू ने एक क्षण डंडे
को तौला, तब
उछलकर ठीकेदार
को ऐसा डंडा
रसीद
किया कि वहीं
दोहरा होकर
द्वार में गिर
पड़ा। इसके बाद
मैकू ने
पियक्कड़ों की ओर
रुख किया और
लगा डंडों की
वर्षा करने। न आगे
देखता था, न पीछे,
बस डंडे चलाये
जाता था।
ताड़ीबाजों के नशे
हिरन हुए ।
घबड़ा-घबड़ा कर
भागने लगे, पर
किवाड़ों के बीच में
ठीकेदार की देह
बिंधी पड़ी थी।
उधर से फिर भीतर
की ओर लपके। मैकू ने
फिर डंडों से
आवाहन किया ।
आखिर सब
ठीकेदार की देह
को रौद-रौद कर
भागे।
किसी का हाथ
टूटा,
किसी का सिर
फूटा,
किसी की कमर
टूटी। ऐसी भगदड़
मची कि एक मिनट
के अन्दर
ताड़ीखाने में एक
चिड़िये का पूत
भी न रह गया।
एकाएक मटकों के
टूटने की आवाज
आयी। स्वयंसेवक ने
भीतर झाँक कर
देखा, तो मैकू
मटकों को विध्वंस
करने में जुटा हुआ
था। बोला—भाई
साहब, अजी भाई
साहब, यह आप
गजब कर रहे हैं।
इससे
तो कहीं अच्छा कि
आपने हमारे
ही ऊपर
अपना गुस्सा
उतारा होता।
मैंकू ने दो-तीन
हाथ चलाकर
बाकी बची हुई
बोतलों और
मटकों का सफाया
कर दिया और तब
चलते-चलते
ठीकेदार को एक
लात जमा कर
बाहर निकल
आया।
कादिर ने
उसको रोक कर
पूछा –तू पागल
तो नहीं हो गया है
बे?
क्या करने
आया था, और
क्या कर रहा है।
मैकू ने लाल-लाल
ऑंखों से उसकी ओर
देख कर कह—
हॉँ अल्लाह
का शुक्र है कि मैं
जो करने आया था,
वह न करके कुछ और
ही कर बैठा। तुममें
कूवत हो,
तो वालंटरों को
मारो, मुझमें कूवत
नहीं है। मैंने
तो जो एक थप्पड़
लगाया।
उसका रंज अभी तक
है और
हमेशा रहेगा !
तमाचे के निशान
मेरे कलेजे पर बन
गये हैं। जो लोग
दूसरों को गुनाह से
बचाने के लिए
अपनी जान देने
को खड़े हैं, उन पर
वही हाथ
उठायेगा,
जो पाजी है,
कमीना है, नामर्द
है। मैकू फिसादी है,
लठैत ,गुंडा है, पर
कमीना और
नामर्द नहीं हैं।
कह
दो पुलिसवालों से ,
चाहें तो मुझे
गिरफ्तार कर लें।
कई ताड़ीबाज खड़े
सिर सहलाते हुए,
उसकी ओर
सहमी हुई ऑंखो से
ताक रहै थे। कुछ
बोलने की हिम्मत
न पड़ती थी। मैकू ने
उनकी ओर देख कर
कहा –मैं कल फिर
आऊँगा। अगर तुममें
से किसी को यहॉँ
देखा तो खून
ही पी जाऊँगा !
जेल और फॉँसी से
नहीं डरता।
तुम्हारी भलमनसी
इसी में है कि अब
भूल कर भी इधर न
आना । यह
कॉँग्रेसवाले
तुम्हारे दुश्मन
नहीं है। तुम्हारे
और तुम्हारे बाल-
बच्चों की भलाई के
लिए ही तुम्हें पीने
से रोकते हैं। इन
पैसों से अपने बाल-
बच्चो की
परवरिश करो,
घी-दूध खाओ। घर
में तो फाके हो रहै
हैं,
घरवाली तुम्हारे
नाम
को रो रही है, और
तुम यहॉँ बैठे
पी रहै हो? लानत
है इस नशेबाजी पर

मैकू ने
वहीं डंडा फेंक
दिया और कदम
बढ़ाता हुआ घर
चला। इस वक्त तक
हजारों आदमियों
का हुजूम
हो गया था।
सभी श्रद्धा, प्रेम
और गर्व
की ऑंखो से मैकू
को देख रहे थे।

Wednesday 28 December 2011

पुत्रवधू की अक्लमंदी

एक किसान था। इस
बार फसल कम होने
की वजह से चिंतित था।
घर में राशन ग्यारह
महीने चल सके
उतना ही था।
बाकी एक महीने
का राशन कैसे लायेगा,
कहाँ से इसका इंतजाम
होगा यह चिंता उसे
बार-बार
सता रही थी।
किसान की पुत्रवधू ने
यह ध्यान
दिया कि पिताजी कि
सी बात को लेकर
परेशान है। पुत्रवधू ने
किसान से पूछा कि -
"क्या बात है,
पिताजी ? आप
इतना परेशान
क्यों है ?"
तब किसान ने
अपनी चिंता का कारण
पुत्रवधू
को बताया कि - "इस
साल फसल कम होने
कि वजह से ग्यारह
महीने चल सके
उतना ही राशन है।
बाकी एक महिना कैसे
गुजरेगा यही सोच
रहा है ?"
किसान की यह बात
सुनकर पुत्रवधू ने
थोडा सोचकर कहा -
"पिताजी, आप
चिंता ना करे, बेफिक्र
हो जाए,
उसका इंतजाम
हो जायेगा।"
ग्यारह महीने बीत
गए, अब
बारहवा महिना भी आ
राम से पसार हो गया।
किसान सोच में पड़
गया कि - "घर में अनाज
तो ग्यारह महीने चले
उतना ही था, तो ये
बारहवा महिना आराम
से कैसे गुजरा ?"
किसान ने
अपनी पुत्रवधू
को बुलवाकर पूछा -
"बेटी, ग्यारह महीने
का राशन बारहवे
महीने तक कैसे चला ?
यह चमत्कार कैसे हुआ ?"
तब पुत्रवधू ने जवाब
दिया कि - "पिताजी,
राशन तो ग्यारह
महीने चले
उतना ही था। किन्तु,
जिस दिन आपने
अपनी चिंता का कारण
बताया... उसी दिन से
रसोई के लिए
जो भी अनाज
निकालती उसी में से
एक-दो मुट्ठी हररोज
वापस कोठी में दाल
देती। बस उसी की वजह
से यह बारहवे महीने
का इंतजाम हो गया।
और बिना तकलिफ़ के
बारहवा महिना आराम
से गुजर गया।"
किसान ने यह बात
सुनी तो दंग सा रह
गया । और
अपनी पुत्रवधू की बचत
समझदारी की अकलमंदी
पर गर्व करने लगा।

Tuesday 20 December 2011

साहस

एक
बकरी थी।
एक उसका मेमना।
दोनों जंगल में चर रहे
थे। चरते - चरते
बकरी को प्यास
लगी। मेमने
को भी प्यास लगी।
बकरी बोली - 'चलो,
पानी पी आएँ।' मेमने
ने भी जोड़ा, 'हाँ माँ!
चलो पानी पी आएँ।'
पानी पीने के लिए
बकरी नदी की ओर
चल दी।
मेमना भी पानी पीने
के लिए नदी की ओर
चल पड़ा।
दोनों चले। बोलते-
बतियाते। हँसते-
गाते। टब्बक-टब्बक।
टब्बक-टब्बक।
बातों-बातों में
बकरी ने मेमने
को बताया - 'साहस
से काम लो तो संकट
टल जाता है। धैर्य
यदि बना रहे
तो विपत्ति से
बचाव
का रास्ता निकल
ही आता है।
माँ की सीख मेमने ने
गाँठ बाँध ली।
दोनों नदी तट पर
पहुँचे। वहाँ पहुँचकर
बकरी ने
नदी को प्रणाम
किया। मेमने ने
भी नदी को प्रणाम
किया। नदी ने
दोनों का स्वागत
कर उन्हें सूचना दी,
'भेड़िया आने
ही वाला है।
पानी पीकर फौरन
घर की राह लो।'
'भेड़िया गंदा है। वह
मुझ जैसे छोटे
जीवों पर रौब
झाड़ता है। उन्हें
मारकर
खा जाता है। वह
घमंडी भी है। तुम उसे
अपने पास क्यों आने
देती हो।
पानी पीने से
मना क्यों नही कर
देती।' मेमने ने नदी से
कहा।
नदी मुस्कुराई।
बोली- 'मैं जानती हूँ
कि भेड़िया गंदा है।
अपने से छोटे
जीवों को सताने
की उसकी आदत मुझे
जरा भी पसंद
नहीं है। पर
क्या करूँ। वह जब
भी मेरे पास आता है,
प्यासा होता है।
प्यास
बुझाना मेरा धर्म
हैं। मैं उसे
मना नहीं कर
सकती।'
बकरी को बहुत जोर
की प्यास लगी थी।
मेमने को भी बहुत
जोर की प्यास
लगी थी।
दोनों नदी पर झुके।
नदी का पानी शीतल
था। साथ में
मीठा भी। बकरी ने
खूब पानी पिया।
मेमने ने भी खूब
पानी पिया।
पानी पीकर
बकरी ने डकार ली।
पानी पीकर मेमने
को भी डकार आई।
डकार से पेट
हल्का हुआ
तो दोनों फिर
नदी पर झुक गए।
पानी पीने लगे।
नदी उनसे कुछ
कहना चाहती थी।
मगर
दोनों को पानी पीते
देख चुप रही।
बकरी ने उठकर
पानी पिया। मेमने
ने भी उठकर
पानी पिया।
पानी पीकर
बकरी मुड़ी तो उसे
जोर
का झटका लगा।
लाल आँखों,
राक्षसी डील-डौल
वाला भेड़िया सामने
खड़ा था। उसके
शरीर का रक्त जम-
सा गया।
मेमना भी भेड़िये
को देख घबराया।
थोड़ी देर तक
दोनों को कुछ न
सूझा।
'अरे वाह! आज तो ठंडे
जल के साथ
गरमागरम भोजन
भी है। अच्छा हुआ
जो तुम
दोनों यहाँ मिल
गए। बड़ी जोर
की भूख लगी है। अब मैं
तुम्हें खाकर पहले
अपनी भूख
मिटाऊँगा।
पानी बाद में
पिऊँगा।
तब तक बकरी संभल
चुकी थी।
मेमना भी संभल
चुका था।
'छि; छि; कितने गंदे
हो तुम। मुँह पर
मक्खियाँ भिनभिना रही है।
लगता है महीनों से
मुँह नहीं धोया।
मेमना बोला।
भेड़िया सकपकाया।
बगले झाँकने लगा।
'जाने दे बेटा। ये ठहरे
जंगल के मंत्री।
बड़ों की बड़ी बातें।
हम उन्हें कैसे समझ
सकते हैं। हो सकता है
भेड़िया दादा ने मुँह
न धोने के लिए कसम
उठा रखी हो।'
बकरी ने बात
बढ़ाई।
'क्या बकती है।
थोड़ी देर पहले
ही तो रेत में रगड़कर
मुँह साफ किया है।'
भेड़िया गुर्राया।
'झूठे कहीं के। मुँह
धोया होता तो क्या ऐसे
ही दिखते। तनिक
नदी में झाँक कर
देखो। असलियत
मालूम पड़ जाएगी।'
हिम्मत बटोर कर
मेमने ने कहा।
भेड़िया सोचने लगा।
बकरी बड़ी है।
उसका भरोसा नहीं।
यह
नन्हाँ मेमना भला क्या झूठ
बोलेगा। रेत से
रगड़ा था,
हो भी सकता है
वहीं पर
गंदी मिट्टी से मुँह
सन गया हो । ऐसे में
इन्हें
खाऊँगा तो नाहक
गंदगी पेट में
जाएगी। फिर
नदी तक जाकर उसमें
झाँककर देखने में
भी कोई
हर्जा नहीं है।
ऐसा संभव नहीं कि मैं
पानी में झाँकू और ये
दोनों भाग जाएँ।
"ऊँह, भागकर जाएँगे
भी कहाँ। एक झपट्टे
में पकड़ लूँगा।
'देखो! मैं मुँह धोने
जा रहा हूँ। भागने
की कोशिश मत
करना।
वरना बुरी मौत
मारूँगा।' भेड़िया ने
धमकी दी।
बकरी हाथ जोड़कर
कहने लगी,
'हमारा तो जन्म
ही आप जैसों की भूख
मिटाने के लिए हुआ
है। हमारा शरीर
जंगल के मंत्री की भूख
मिटानै के काम आए
हमारे लिए इससे
ज्यादा बड़ी बात
भला और
क्या हो सकती है।
आप तसल्ली से मुँह
धो लें। यहाँ से बीस
कदम आगे
नदी का पानी बिल्कुल
साफ है। वहाँ जाकर
मुँह धोएँ। विश्वास
न हो तो मैं भी साथ
में चलती हूँ।'
भेड़िये को बात
भा गई। वह उस ओर
बढ़ा जिधर बकरी ने
इशारा किया था।
वहाँ पर
पानी काफी गहरा था।
किनारे चिकने। जैसे
ही भेड़िये ने
अपना चेहरा देखने के
लिए नदी में झाँका,
पीछे से बकरी ने
अपनी पूरी ताकत
समेटकर जोर
का धक्का दिया।
भेड़िया अपने
भारी भरकम शरीर
को संभाल न
पाया और 'धप' से
नदी में जा गिरा।
उसके गिरते
ही बकरी ने वापस
जंगल की दिशा में
दौड़ना शुरू कर
दिया। उसके पीछे
मेमना भी था।
दोनों नदी से
काफी दूर निकल
आए। सुरक्षित स्थान
पर पहुँचकर
बकरी रुकी।
मेमना भी रुका।
बकरी ने लाड़ से मेमने
को देखा। मेमने ने
विजेता के से दर्प
साथ
अपनी माँ की आँखों में
झाँका। दोनों के
चेहरों से
आत्मविश्वास झलक
रहा था।
बकरी बोली --
‘कुछ समझे?'
'हाँ समझा।'
'क्या ?
'साहस से काम
लो तो खतरा टल
जाता है।'
'और?'
'धैर्य यदि बना रहे
तो विपत्ति से बचने
का रास्ता निकल
ही आता है।'
'शाबाश!'
बकरी बोली।
इसी के साथ वह हँसने
लगी। माँ के साथ-
साथ मेमना भी हँसने
लगा।