राजकुमार का अदम्य साहस-6

अगले दिन प्रात:
प्रस्थान करने
का निश्चय किया।
बड़े तड़के उठकर
राजकुमार ने अपने
घोड़े को खूब प्यार
किया, वजीर के लड़के
के बहते आंसूओं को पोंछ
कर उसे सीने से
लगाया और सूर्य
की प्रथम किरण के
फूटते ही पैरों में
खड़ाऊं पहन कर सागर
के तट पर
जा खड़ा हुआ। उसके
बाद ज्यों ही पैर
पानी पर रखा,
उसका सारा बदन
कांप उठा; लेकिन
तभी उसने अनुभव
किया कि वह
पानी पर ऐसे
खड़ा है, जैसे
धरती पर खड़ा हो।
फिर तो वह एक-एक
कदम रखते हुए आगे
बढ़ने लगा। वजीर
का लड़का आश्चर्य से
देख
रहा था कि पानी प
यह इस प्रकार कैसे
चल रहा है? धीरे-
धीर राजकुमार
आंखों से ओझल
हो गया। राजकुमार
का वह पूरा दिन
सागर पर चलते-चलते
समुद्र पर
चलता राजकुमार
बीता। समुद्र
की छोटी-
बड़ी मछलियां दूसरे
जीव-जन्तु
उसकी तरफ आते थे,
किन्तु उसके पास आने
की हिम्मत नहीं कर
पाते थे, कुछ दूर से
ही भाग जाते थे।
राजकुमार बड़े आनंद से
आगे बढ़ता गया। पर
समुद्र का अंत उसे
दिखाई
नहीं देता था।
पूरा दिन और
पूरी रात उसने चलते-
चलते बिताई।
अगला दिन आया, तब
उसे सागर
का किनारा दीख
पड़ा। वही था सिंहल
द्वीप, जिसमें
पद्मिनी को पाने के
लिए वह घर से
निकला था। उस
भूमि को देख कर उसे
रोमांच हो आया,
लेकिन दूर से ही उसने
देखा कि काले-काले
खूंखार राक्षस द्वीप
की रक्षा के लिए खड़े
हैं। राजकुमार ने भभूत
की डिब्बी खोली और
एक चुटकी भभूत मुंह में
डाल ली। अब वह
सबको देख सकता था।
वह बेधड़क राक्षसों के
बीच पहुंच गया।
राक्षस बड़े
ही डरावने थे। उनके
रंग-रूप और
चेहरों को देखकर
रौंगटे खड़े हो जाते
थे। उनके हाथों में
हथियार देखकर
प्राण सूख जाते थे।
राजकुमार उस
सबको देख कर
सकपका रहा था,
हालांकि उसे
पता था कि कोई
भी उसे देख
नहीं पा रहा है।
राजकुमार ने निश्चय
किया कि वह पहले
शहर का एक चक्कर
लगा ले। शहर
को समझकर फिर आगे
का कार्यक्रम तय
करे। वह शहर में खूब
घूमा। पद्मिनी के
महल पर भी गया।
किन्तु उसे
लगा कि जोर-
जबरदस्ती से महल में
घुसना असंभव है। उसके
लिए कोई जुगत
करनी होगी। नगर
इतना सुन्दर और
कलापूर्ण था कि अपने
को भूल गया।
ऐसा अनुपम नगर
तो उसने पहले
कभी नहीं देखा था।
जगह-जगह पर
हरी दूब के कालीन
बिछे थे और रंग-बिरंगे
पुष्पों से सारा शहर
सुशोभित और महक
रहा था। कदम-कदम
पर गुलाब जल के
फव्वारे चल रहे थे।
सड़कें बड़ी साफ-
सुथरी थीं।
गंदगी का कहीं नाम
भी नहीं था।
बढ़िया पोशाकें पहन
स्त्री-पुरुष, बच्चे
इधर-उधर घूम रहे थे।
उनका रूप
बड़ा सलोना था।
राजकुमार उस
सबको देखकर मुग्ध
हो गया। उसे लग
रहा था, जैसे वह
इन्द्रपुरी में पहुंच
गया है। वह
घूमता रहा,
घूमता रहा।
सहसा उसे ध्यान
आया कि वह अदृश्य
तो बन गया है, पर
अपने असली रूप में कैसे
आयेगा। यह सोचकर
उसका मन व्यग्र
हो गया। अब वह
क्या करे?
उसकी हैरानी बढ़ती
उसे उन
बाबा का ध्यान
हो आया, जिन्होंने
भभूत की वह
डिबिया दी थी।
तभी उसे दिखाई
दिया कि बाबा उसके
सामने खड़े हैं। वह कह
रहे थे कि यह ले
दूसरी डिबिया,
जिसकी भभूत खाते
ही तू अपने असली रूप
में आ जायेगा।
राजकुमार ने खुश
होकर
दूसरी डिबिया ले
ली। बाबा अंतर्धान
होते-होते कह गये
कि दूसरी डिबिया क
होशियारी से
करना। यदि लोगों ने
देख लिया तो राक्षस
तुझे
कच्चा ही खा जायेंगे।
अब राजकुमार ने, आगे
क्या करना है, इस
बारे में सोचा।
सोचते-सोचते उसने
काला और सफेद बाल
निकाला। पहले उसने
काला बाल जलाया।
उस बाल
का जलना था कि रा
आकर खड़ी हो गई।
उसने आदेश
दिया कि पहरे के
राक्षसों का खात्मा
दो। देखते-देखते सारे
राक्षस
धराशायी हो गये।
उसने थोड़े-से
राक्षसों को रोककर
शेष को विदा कर
दिया। इसके पश्चात
उसने सफेद बाल
जलाकर
देवों को बुलाया।
उनके आने पर उसने
कहा, “समुद्र के
किनारे हीरे-
जवाहरात
तथा नाना प्रकार के
आभूषणों से भरा एक
जहाज खड़ा कर दो।
पलक झपकते ही एक
बड़ा ही सुन्दर जहाज
खड़ा हो गया, उसमें
हीरे-जवाहरात भरे
थे और तरह-तरह के
आभूषण थे। आभूषण एक
से बढ़ कर एक थे।
यह सब होते ही नगर
भर में खबर फैल गई
कि परदेस से एक बहुत
बड़ा सौदागर
आया है। लोग अचंभे में
रह गये
कि ऐसा एकदम
कैसा हो गया, लेकिन
उनके सामने सौदागर
मौजूद था और उसके
पास
बेशकीमती आभूषणों क
था। यह खबर उड़ती-
उड़ती राजमहल में
पहुंची। पद्मिनी ने
यह सब
सुना तो उसका मन
मचल उठा। उसने
कहा,”उस
व्यापारी को हमारे
सामने लाओ।” तुरंत
पद्मिनी के दूत
व्यापारी बने
राजकुमार के पास
पहुंचे और
पद्मिनी का संदेश कह
सुनाया। राजकुमार
तो यह
चाहता ही था। वह
पद्मिनी से मिलने
महल में
पहुंचा तो वहां के
दृश्य देखता ही रह
गया। सबकुछ
अनूठा था। महल
का द्वार बहुत
ही कला-
कारीगरी पूर्ण था।
अंदर लता-गुलमों के
बीच फव्वारे
अपनी बहार
दिखा रहे थे। महल
चारों ओर से
घिरा था, किन्तु दूत
के साथ होने के कारण
उसे अंदर प्रवेश पाने
में कोई कठिनाई
नहीं हुई।
पद्मिनी एक सजे-धजे
कक्ष में सिंहासन पर
विराजमान थी।
राजकुमार के कक्ष में
प्रविष्ट होते
ही उसने
उसका अभिवादन
किया। राजकुमार ने
भी हाथ जोड़कर,
सिर झुका कर
अपना सम्मान व्यक्त
किया। पद्मिनी ने
उसे बैठने का संकेत
किया। वह आसन पर
बैठ
गया तो पद्मिनी ने
पूछा, “तुम कहां से
आये हो?” पद्मिनी के
मुंह से शब्द नहीं,
मानों फूल झड़े हों।
राजकुमार एकटक
उसकी ओर देखते हुए
बोला, “मैं स्वर्ण-
भूमि से आया हूं।”
“वहां क्या करते थे?”
पद्मिनी ने
अगला प्रश्न किया।
“जी, मैं हीरे-
जवाहरात
का व्यापारी हूं।”
राजकुमार ने उत्तर
दिया। “यहां कैसे
आये?” पद्मिनी ने
थोड़ा गंभीर होकर
पूछा। “सुना था, आप
आभूषणों और हीरे-
जवाहरात
की पारखी और
प्रेमी हैं।”
राजकुमार
का संक्षिप्त उत्तर
था। “तो तुम कुछ
आभूषण लाये हो?”
“जी हां।”
“कहां हैं?”
“समुद्र के किनारे
मेरा जहाज खड़ा है।”
राजकुमार ने सहज
भाव से कह दिया।
पद्मिनी ने
मुस्करा कर कहा,
“तो तुम उन्हें मुझे
दिखा सकते हो?”
“अवश्य। मैं
तो यहां आया ही इस
काम से हूं।” “ठीक
है। अब तुम जाओ।”
पद्मिनी ने
धीमी आवाज में कहा,
“कल मेरा दूत तुम्हारे
पास आयेगा। उसके
साथ कुछ
बढ़िया आभूषण ले
आना।” राजकुमार ने
पद्मिनी से
विदा तो ली, लेकिन
उसके रूप-लावण्य से
इतना मोहित
हो गया कि अपनी सु
बुधि खो बैठा। उसके
लिए चलना मुश्किल
हो गया। वह मुड़-मुड़
कर पीछे देखता था।
ऐसी रूपसी तो उसने
जीवन में
कभी नहीं देखी थी।
परियां अपनी सुन्दर
लिए प्रसिद्ध
होती हैं, लेकिन वे
भी पद्मिनी के आगे
पानी भरती थीं।
चारों दिशाओं में
उसकी ख्याति ठीक
ही फैली थी।
पद्मिनी के मोहपाश
में फंसा राजकुमार जब
अपने जहाज पर
आया तो पद्मिनी उस
आगे घूम रही थी।
उसके अंग-प्रत्यंग से
सौंदर्य टपक
रहा था। राजकुमार
की भूख-प्यास गायब
हो गई, नींद उड़ गई।
बिस्तर पर पड़ा-
पड़ा उसकी याद में
वह लम्बी सांसें
लेता रहा।
तभी देखता क्या है
कि खड़ाऊं वाले
बाबा उसके सामने
उसकी ओर देख रहे हैं।
राजकुमार ने उठने
की कोशिश की, पर
उससे उठा नहीं गया।
बाबा निमिष भर
चुपचाप खड़े रहे, फिर
बोले,”क्या तुम
यहां आहें भरने के लिए
आये हो। अपने उद्देश्य
को भूल गये? जो अपने
उद्देश्य को भूल
जाता है, वह पतित
हो जाता है। अब तुम
आगे की सोचो और
अपने काम
को जल्दी से
निबटाओ। ऐसी जगह
देरी करना अच्छा नह
कौन जाने,
क्या मुसीबत सिर पर
आ जाये।” यह
चेतावनी देकर
बाबा अंतर्धान
हो गये। राजकुमार
सिर झटककर उठ
खड़ा हुआ, पर
पद्मिनी की खुमारी
दूर होने
वाली नहीं थी।
पूरा दिन
पद्मिनी की याद मैं
बीता। रात
का अंधेरा होने
आया तो वह चौंक
पड़ा उसे याद
आया कि अगले दिन
पद्मिनी का दूत आने
वाला है और उसे
अच्छे-अच्छे आभूषण
लेकर पद्मिनी के पास
जाना है। उसने उठकर
अलमारियां खोलीं औ
उनमें से आभूषण
निकाले। बात
उतनी आभूषणों की नह
जितनी पद्मिनी को
की थी। उसने ऐसे
आभूषण चुने, जिन्हें
देखकर पद्मिनी रीझ
उठे। कान के, गले के,
वक्ष के, कटि के,
पैरों के, उसने उन
आभूषणों को चुना,
जिन्हें अप्सराएं
धारण करती हैं। इन
आभूषणों का चुनाव
करके उसने सोने
की चेष्टा की, लेकिन
एक पल को भी उसे
नींद नहीं आई। वह
दिन का उजाला देखने
का प्रयत्न
करता रहा।
दिन निकलने से पहले
ही वह उठकर तैयार
हो गया। सवेरा हुआ,
दोपहर हुई, पर कोई
भी उसे लेने
नहीं आया।
राजकुमार ने समझ
लिया कि पद्मिनी भू
गई। शाम को जब वह
निराश
हो गया था तो बड़े
सपाटे से दूत आया और
उसे तत्काल
रवाना होने
को कहा। वह
तो सवेरे से ही तैयार
बैठा था। दूत के साथ
चल दिया।