राजकुमार का अदम्य साहस-1

पुराने जमाने की बात
है। एक राजा था।
उसके सात लड़के थे। छ:
का विवाह
हो गया था।
सातवां अभी कुंवारा
एक दिन वह महल में
बैठा था कि उसे बड़े
जोर की प्यास लगी।
उसने इधर-उधर
देखा तो सामने से
उसकी छोटी भाभी आ
दीं। उसने कहा,
“भाभी, मुझे एक
गिलास पानी दे
दो।” महल में इतने
नौकर-चाकर होते
हुए भी सबसे छोटे
राजकुमार की यह
हिम्मत कैसे हुई,
भाभी मन-ही मन
खीज उठीं। उन्होंने
व्यंग्य भरे स्वर में
कहा,
“तुम्हारा इतना ऊंच
है तो जाओ,
रानी पद्मिनी को ले
आओ।”
राजकुमार ने यह
सुना तो उसका पारा
चढ़ गया। बोला,
“जबतक मैं
रानी पद्मिनी को न
आऊंगा, इस घर
का अन्न-जल ग्रहण
नहीं करूंगा।”
बात छोटी-सी थी,
लेकिन उसने उग्र रूप
धारण कर लिया।
रानी पद्मिनी काले
कोसों दूर रहती थी।
वहां पहुंचना आसान न
था।
रास्ता बड़ा दूभर
था। जंगल, पहाड़,
नदी-नाले, समुद्र,
जाने क्या रास्ते में
पड़ते थे, किन्तु
राजकुमार तो संकल्प
कर चुका था और वह
पत्थर की लकीर के
समान था। उसने
तत्काल वजीर के लड़के
को बुलवाया और उसे
सारी बात सुनाकर
दो घोड़े तैयार
करवाने को कहा।
वजीर के लड़के ने उसे
बार-बार
समझाया कि रानी प
पहुंचना बहुत मुश्किल
है, पर राजकुमार
अपनी हठ पर
अड़ा रहा। उसने
कहा, “चाहे कुछ
भी हो जाये,
बिना रानी पद्मिन
मैं इस महल में पैर
नहीं रक्खूंगा।”
दो घोड़े तैयार किये
गये, रास्ते के खाने-
पीने के लिए सामान
की व्यवस्था की गई
और राजकुमार
तथा वजीर
का लड़का रानी पद्म
में निकल पड़े।
उन्होंने
पता लगाया तो मालू
हुआ
कि रानी पद्मिनी स
द्वीप में रहती है,
जहां पहुंचने के लिए
सागर पार
करना होता है। फिर
रानी का महल
चारों ओर से
राक्षसों से घिरा है।
उनकी किलेबंदी को त
महल में प्रवेश
पाना असंभव है वजीर
के लड़के ने एक बार
फिर राजकुमार
को समझाया कि वह
अपनी प्रतिज्ञा को
दे अपनी जान
को जोखिम में न
डाले, किन्तु
राजकुमार ने कहा,
“तीर एक बार तरकश
से छूट जाता है
तो वापस नहीं आता।
मैं तो अपने वचन
को पूरा करके
ही रहूंगा।” वजीर
का लड़का चुप रह
गया। दोनों अपने-
अपने घोड़ों पर सवार
होकर
रवाना हो गया।
दोपहर को उन्होने
एक अमराई में
डेरा डाला।
खाना खाया,
थोड़ी देर आराम
किया, उसके बाद आगे
बढ़ गये। चलते-चलते
दिन ढलने लगा,
गोधूलि की बेला आई।
इसी समय उन्हें सामने
एक बहुत बड़ा बाग
दिखाई दिया।
राजकुमार ने कहा,
“आज की रात इस
बाग में बिताकर कल
तड़के आगे चल पड़ेंगे।”
बाग का फाटक
खुला था और
वहां कोई चौकीदार
या रक्षक नहीं था।
वजीर के लड़के ने उधर
निगाह डालकर कहा,
“मुझे तो यहां कोई
खतरा दिखाई
देता है। हम लोग
यहां न रुक कर आगे
और कहीं रुकेंगे।”
राजकुमार हंस पड़ा।
बोला, “बड़े डरपोक
हो तुम!
यहां क्या खतरा हो
देखते नहीं,
कितना हरा-
भरा सुन्दर बाग है!”
वजीर के लड़के ने
कहा, “आप मानें न
मानें, मुझे तो लग
रहा है कि यहां कोई
भेद छिपा है।”
राजकुमार ने
उसकी एक न सुनी और
अपने घोड़े को फाटक
के अंदर बढ़ा दिया।
बेचारा वजीर
का लड़का भी उसके
पीछे-पीछे बाग में घुस
गया। ज्योंही वे अंदर
पहुंचे कि बाग
का फाटक अपने आप
बंद हो गया।
राजकुमार और वजीर
के लड़के
को काटो तो खून
नहीं। यह
क्या हो गया? वजीर
के लड़के ने राजकुमार
से कहा, “मैंने आपसे
कहा था न
कि यहां ठहरना मुना
नहीं? पर आप
नहीं माने।
उसका नतीजा देख
लिया!” राजकुमार ने
कहा, “वह सब छोड़ो!
अब यह सोचो कि हम
क्या करें”
वजीर
का लड़का बोला,
“अब तो एक
ही रास्ता है कि हम
घोड़ों को यहीं पेड़ों
बांध दें और किसी घने
पेड़ के ऊपर चढ़ कर
बैठ जायें। देखें, आगे
क्या होता है।”
दोनों ने यही किया।
घोड़े पेड़ से बांध कर
वे एक ऊंचे पेड़ पर चढ़
गये और चुपचाप बैठ
गये। अंधकार फैल
गया।
सन्नाटा छा गया।
राजकुमार को नींद
आने लगी।
तभी उन्होंने
देखा कि हवा में
उड़ता कोई चला आ
रहा है। दोनों कांप
उठे। हवा का वेग
रुकते ही वह
आकृति नीचे उतरी।
उसकी शक्ल देखते
ही दोनों को लगा क
पेड़ से नीचे गिर
पड़ेंगे। वह एक
परी थी। उसने नीचे
खड़े होकर अपने इर्द-
गिर्द देखा।
तभी इधर-उधर से कई
परियां आ गईं। उनके
हाथों में पानी से भरे
बर्तन थे। उन्होंने
वहां छिड़काव
किया। वह
पानी नहीं, गुलाबजल
था। उसकी खुशबू से
सारा बाग महक
उठा।