राजकुमार का अदम्य साहस-7

जब वह महल में
पहुंचा,
पद्मिनी उसका इंतज
कर रही थी। आज वह
दूसरे कक्ष में थी,
जिसमें चारों ओर
आदमकद शीशे लगे थे।
प्रकाश से
सारा कमरा आलोकि
हो रहा था।
पद्मिनी का सौंदर्य
आज कई गुना निखर
उठा था। पिछले दिन
की तरह पद्मिनी ने
और राजकुमार ने एक-
दूसरे का अभिवादन
किया और पद्मिनी के
संकेत पर राजकुमार
उसके समीप ही बैठ
गया। राजकुमार ने
डिब्बे-डिब्बियों में
से आभूषण निकाल कर
उसे दिखाना आरंभ
किया।
पद्मिनी एक-एक
आभूषण को हाथ में
लेकर अपने शरीर से
लगाकर शीशे में
देखती कि कैसा लगता
और जो उसे पसंद
आता, उसे एक ओर
को रख देती। कभी-
कभी वह राजकुमार
की भी सलाह लेती।
आभूषणों को देखते-
देखते काफी देर
हो गई
तो पद्मिनी ने कहा,
“अब हम कल देखेंगे।”
बड़े अनमने भाव से
राजकुमार ने कहा,
“जैसी आपकी मर्जी।”
राजकुमार
चला तो आज
उसकी हालत कल से
भी अधिक
मोहासिक्त थी। आज
उसने पद्मिनी के जिस
रूप की झांकी पाई
थी, वह तो अलौकिक
था। उसकी आंखें
चौंधिया रही थीं।
आज एक नई कल्पना ने
उसके मन-मस्तिष्क
को झकझोर
डाला था। कुछ
ही समय में वह उसे
वहां से ले जायेगा।
तब उसके अनुपम
सौंदर्य के भार
को वह कैसे वहन कर
पायेगा? वह
राजकुमार है, इतने
बड़े राज्य के
राजा का पुत्र है,
किन्तु कहां राजगढ़
का राज्य और
कहां सिंहल द्वीप
की इस अपूर्व
सुन्दरी का वैभव।
दोनों में जमीन-
आसमान का अंतर था।
पर उठा कदम अब
वापस
तो लिया नहीं जा स
विचारों के अथाह
सागर में डूबता-
उतरता राजकुमार
अपने जहाज पर आया।
वह हाल-बेहाल
हो रहा था। भूख-
प्यास, नींद सब उससे
रूठ गई थी। वह
बिस्तर पर
पड़ा रहा।
उसकी हालत
सन्निपात के रोगी के
समान हो रही थी।
वह अपने से ही बात
करता था, पर उसके
शब्द अस्पष्ट थे।
कभी उसकी आवाज तेज
हो जाती थी,
कभी मंद पड़
जाती थी।
राजकुमार स्वयं
हैरान था कि उसे
क्या हो गया है।
यह सब होते हुए
भी उसने राजमहल में
जाने की तैयारी की।
कल की अपेक्षा आज
और भी बढ़िया चीजें,
निकालीं। उसे
भरोसा था कि पद्मि
अवश्य पसंद करेगी।
अगले दिन उसे अधिक
प्रतीक्षा नहीं करन
जल्दी ही पद्मिनी क
आ गया और वह
दोपहर होने से पहले
ही महल में पहुंच
गया। पद्मिनी इन
आभूषणों को देखकर
चकित रह गई। ऐसे
आभूषण उसने पहले
कभी नहीं देखे थे।
उनमें से उसने ढेर सारे
पसंद कर लिये। जब
वह उन्हें लेने
लगी तो उसने
देखा कि वे अधूरे हैं।
जोड़ीदार आभूषणों में
से अधिकांश एक-एक
थे। पद्मिनी ने पूछा,
“यह क्या है?”
राजकुमार ने उत्तर
दिया,
“अभी तो जहाज पर
आभूषणों का भण्डार
भरा पड़ा है। मैंने
सोचा कि आप जब
अपनी पसंद पूरी कर
लेंगी तब
उनकी जोड़ियां पूरी
दूंगा।” पद्मिनी ने
खीजकर कहा, “यह
तुमने क्यों सोचा!”
राजकुमार ने कहा,
“इसलिए
कि मेरी इच्छा थी क
एक बार आभूषणों के
सारे भण्डार को देख
लें। अगर
आपको आपत्ति न
हो तो एक बार स्वयं
जहाज पर जाकर पूरे
भण्डार को देख लें।”
इस सुझाव पर
राजकुमारी थोड़ा स
में पड़ी। अंत में उसने
राजकुमार की बात
मान ली और वह
जहाज पर जाने
को राजी हो गई।
इसके बाद राजकुमार
पद्मिनी से
छुट्टी लेकर अपने
जहाज पर लौट आया।
नियत समय पर
पद्मिनी जहाज पर
आई।
वहां आभूषणों का अथा
भण्डार था। उन्हें
देखने में
पद्मिनी इतना लीन
हो गई कि वह समय
को ही नहीं, अपने
को भी भूल गई। काम
निबटाकर जाने
को हुई तो राजकुमार
ने कहा, “अब आप
जाओगी कहां और
कैसे?”
पद्मिनी चकित
होकर बोली,
“क्यों?”
“क्यों क्या?
देखती नहीं कि जहाज
चल रहा है और हम
किनारे से बहुत दूर
निकल आये हैं।”
पद्मिनी पहले
तो मजाक समझी।
फिर उसने
देखा कि जहाज सचमुच
चल रहा है। मारे
गुस्से के
उसका चेहरा तमतमा
उत्तेजित होकर
बोली, “तुमने मेरे
साथ छल किया है।
इसकी तुम्हें
सजा मिलेगी।”
राजकुमार हंस पड़ा।
बोला,
“पद्मिनी जी, हम
सिंहल द्वीप
की सीमा से बहुत दूर
निकल आये हैं।”
पद्मिनी को लेकर
जहाज चल
पड़ा पद्मिनी मछली
तड़फड़ाने लगी। उसके
चेहरे का रंग
फीका पड़ गया।
राजकुमार ने कहा,
“घबराओ नहीं। मैं
राजगढ़
का राजकुमार हूं।”
इसके बाद उसने
पद्मिनी को शुरू से
लेकर आखिर तक
की सारी कहानी सुन
फिर बोला, “तुम्हें
पाने के लिए मुझे बड़े
पापड़ बेलने पड़े हैं।”
उस कहानी को सुनकर
पद्मिनी का संताप
काफी हद तक दूर
हो गया। बोली,
“इसके लिए
इतना कपट करने
की क्या जरूरत थी।”
“कपट
नहीं किया होता तो
राजी से आ जातीं?”
पद्मिनी ने
इसका उत्तर
नहीं दिया। पर
जो होना था, वह
हो चुका था, अब
उसके सामने बचने
का कोई
रास्ता नहीं था।
भाग्य के साथ
समझौता करने के
अलावा अब और
क्या हो सकता था।
आहत हिरनी की तरह
वह राजकुमार के पास
आ बैठी।
जहाज तेजी से आगे बढ़
रहा था।
पद्मिनी आवेश और
आवेग से थक कर चूर
हो गई थी। उसे सूझ
नहीं रहा था,
क्या करे। मन
उसका इतना आस्थिर
हो रहा था कि एका
भाव से कुछ सोच
भी नहीं पा रही थी
इतने में जहाज बड़े
जोर से इधर-उधर
होने लगा।
पद्मिनी ने भयभीत
होकर राजकुमार
की ओर देखा।
राजकुमार ने उसे
सांत्वना देते हुए कह,
“घबराने की कोई
बात नहीं है।
समुद्री तूफान आ
गया है। थोड़ी देर में
शांत हो जायेगा।”
तूफान का वेग
बढ़ता गया। बड़ी-
बड़ी लहरें उठकर
जहाज से टकराने
लगीं। जहाज
डगमगाने लगा।
किसी आसन्न खतरे
की आशंका से वह
राजकुमार से लिपट
गई। राजकुमार ने
धीरे-धीरे
उसकी पीठ थपथपाई
और उसे
भरोसा दिया कि उन
नहीं बिगड़ेगा। फिर
हंस कर राजकुमार
बोला, “अब तुम्हें
परेशान होने
की जरूरत नहीं है।
तुम्हारी रक्षा की ज
तुम्हारी नहीं,
मेरी है।” राजकुमार
उसे दुलारता रहा।
तूफान का वेग धीरे-
धीरे शांत
होता गया।
पद्मिनी तन-मन से
बेहद थक गई थी।
सो गई। पर
राजकुमार की आंख
नहीं लगी। अचानक
उसे बड़ा धीमा स्वर
सुनाई दिया।
राजकुमार ने
विस्मित होकर
इधर-उधर देखा।
जहाज पर उन
दोनों के सिवा कोई
नहीं था, फिर वह
स्वर किसका था?
पता चला कि एक
तोता और एक
मैना आपस में बातें कर
रहे हैं। अपनी आदत के
अनुसार तोते ने
मैना से कुछ कहने
को कहा और मैना ने
वही बात दोहराई
कि वह आपबीती कहे
या परबीती।
तोता बोला, “कुछ
आपबीती कहो, कुछ
परबीती।”मैना ने
कहा, “कल मेरी जान
बाल-बाल बची।”
तोते ने व्यग्र होकर
पूछा, “क्या हुआ?”
मैना बोली,
“क्या कहूं,
जमाना बड़ा खराब
हो गया है। आदमी ने
हमारा जीना हराम
कर दिया है। हम
उसका कुछ
भी नहीं बिगाड़ते,
फिर भी वह
हमारी जान लेने पर
तुला रहता है। कल मैं
एक पेड़ पर
बैठी थी कि किसी आ
मुझ पर
जानलेवा हमला किय
वह तो पेड़ के
पत्तों और टहनियों ने
मुझे बचा लिया,
नहीं तो जान जाने में
कुछ कसर
नहीं रही थी।” तोते
के मुंह से एक दीर्घ
निश्वास छूटा। फिर
फुसफुसाया,
“जाको राखे साइयां,
मारि न सकिये
कोय।”
मैना ने कातर होकर
कहा, “मर भी जाते
तो क्या? अब मेरे
लिए रोने वाला कौन
है? बच्चे बड़े होकर
जाने कहां चले गये!
अकेली जान रह गई
है।” मैना सिसकने
लगी। तोते ने कहा,
“मैना इतना दु:खी क्
जिसका कोई
नहीं होता,
उसका भगवान
होता है।” फिर कुछ
चुप रहकर बोला,
“अब कुछ
परबीती कहो।”
मैना ने कहा,
“क्या कहूं,
चारों तरफ दु:ख है।
इस जहाज पर दो बड़े
प्यारे लोग हैं, लेकिन
हाय!” मैना एकदम
खामोश हो गई। फिर
उसने कहा,
“इनकी सांसें
गिनी चुनी हैं!
बेचारे !”
तोता व्यथित
हो उठा। बोला,
“रुक-रुक कर
क्यों बोलती हो।
साफ-साफ
कहो कि इन्हें
क्या होने वाला है।”
मैना ने कहा, “सवेरे
यह जहाज किनारे लग
जायेगा। वहां वजीर
का लड़का मिल
जायेगा। उसने इन
दोनों के ठहरने
की व्यवस्था एक घर
में की है। इनके ठहरने
के कुछ ही देर बाद
घर ढह जायेगा।
दोनों उसमें दब
जायेंगे।” तोते ने
व्यथित होकर कहा,
“यह
तो बड़ा बुरा होगा,
मैना। अभी इन
बेचारों ने दुनिया में
देखा ही क्या है।
क्या इनके बचने
का कोई उपाय
नहीं है?” “है।”
बोली, “ये वजीर के
लड़के की बात न मानें
और उस घर में न ठहरें।
अगर कोई
सुनता हो तो गांठ
बांध ले कि अगर ये
उस घर में ठहरे
तो इनके प्राण
किसी भी हालत में
नहीं बचेंगे।” तोते ने
पूछा, ‘‘उसके बाद
तो खैरियत है न?’’
मैना ने कहा,
“कहावत है
कि मुसीबत
कभी अकेली नहीं आती
इनकी मुसीबत
यहीं खत्म
नहीं हो जाती। ये
जहां ठहरेंगे,
वहां भी एक मुसीबत
इनका पीछा कर
रही है। “वह
क्या?”तोते ने अधीर
होकर पूछा।
मैना बोली, “सवेरे
उठकर
राजकुमारी जैसे
ही अपने जूते में पैर
डालेगी, उसमें
बैठा सांप उसे काट
लेगा।” तोते के मुंह से
निकला, “हे
भगवान!” उसने आहत
होकर पूछा,
“क्या उससे बचने
का कोई
रास्ता नहीं है?”
मैना बोली,
“रास्ता सब
चीजों का होता है।
यदि कोई
सुनता हो तो राजकुम
पहले उठे और सांप
को मारकर निकाल
ले।” “वहां से बचने के
बाद तो फिर
को कोई
बाधा नहीं है?” तोते
ने पूछा। “एक
बाधा और है।”
मैना ने कहा। “एक
बाधा और है।
“मैना ने कहा। “वह
क्या?” “ये दोनों एक
उड़नखटोले में बैठेंगे।”
मैना बोली, “वह
उड़नखटोला ऊपर
जाकर खराब
हो जायेगा और नीचे
आ गिरेगा। उसमें ये
दोनों मर जायेंगे।”
तोते ने कहा,
“तुम्हारी ये बातें
सुन-सुनकर मेरा दिल
बैठा जा रहा है।
जल्दी से बताओ
कि इस आफत से बचने
का कोई मार्ग है?”
मैना ने कहा, “अगर
कोई
सुनता हो तो वह
इन्हें उड़नखटोले में न
बैठने दे। इन सब
बाधाओं से पार जाने
पर इनकी जिन्दगी में
आनंद ही आनंद है।”
तोते ने चैन की सांस
ली।
राजकुमार
मैना की एक-एक बात
बड़े ध्यान से सुन
रहा था। अपने ऊपर
आने वाली आपदाओं से
वह सिहर उठा, पर
बचने के उपाय जानकर
उसे खुशी हुई। उसने
मन ही मन
मैना का उपकार
माना। सवेरा होने में
अब देर नहीं था।
दोनों पक्षी उड़ गये।
किनारा भी तो अब
दूर नहीं था।