राजकुमार का अदम्य साहस-5

आश्रम से वे बड़े तड़के
रवाना हो गये।
अभी उनकी मंजिल
काफ़ी दूर थी।
बिना रुके वे चलते
गये। दिन चढ़ आया,
सूरज सिर पर आ
गया, तब वे एक
जलाशय के किनारे
रुके, स्नान किया,
भोजन किया और
थोड़ी देर विश्राम
करके आगे बढ़ चले।
मौसम अच्छा था।
मंद-मंद पवन बह
रही थी।
रास्ता साफ था।
पक्षी मस्ती से इधर-
उधर उड़ान भर रहे
थे। राजकुमार ने
मार्ग
दृश्यों को देखकर
वजीर के लड़के से
कहा, “देखो, सब कुछ
कितना गतिशील है।
सूर्य क्षमता नहीं,
पवन रुकती नहीं,
पक्षियों का कलरव
गान
हमेशा चलता रहता है
आदमी को इससे सीख
लेनी चाहिए।”
वजीर के लड़के ने
देखा कि राजकुमार
का मन-कुरंग छलांगे
भर रहा है। उसने
कहा,
“धरती भी कहां रुकत
हर
घड़ी घूमती रहती है।
वह रुक जाये
तो दुनिया में
हाहाकार मच
जाये।” “तुम ठीक
कहते हो, मित्र!”
राजकुमार ने प्रसन्न
मुद्रा में कहा। फिर
वह चुप होकर
चारों और फैले आनंद से
पुलकित होने लगा।
घोड़ों ने भी जैसे
स्वामी के मनोभाव
जान लिये।
उनकी गति भी तीव्र
होती गई। दिन ढलने
लगा,
अंधेरा अपनी चादर
फैलाने लगा,तबतक वे
बराबर चलते रहे और
फिर एक घने वृक्ष के
नीचे रात बिताने के
लिए रुक गये।
राजकुमार के मन में
विचारों का ज्वार-
भाटा उठ रहा था।
वजीर
का लड़का तो सो गय
पर उसे नींद
नहीं आई। थोड़ी देर
में देखता क्या है
कि उस पेड़ पर एक
तोता और एक
मैना आकर बैठ गये।
उनमें बातें होने लगीं।
राजकुमार
पक्षियों की भाषा ज
वह ध्यान से
उनकी बातें सुनने
लगा। तोते ने कहा,
“मैना, कुछ
कहो जिससे रात
कटे।” मैना बोली,
“आपबीती कहूं
या परबीती?” तोते
ने कहा,
“अरी आपबीती तो र
ही सुनते रहते हैं। कुछ
परबीती कहो।”
मैना बोली, “इस
नगर के राजा के एक
लड़की है। बड़ी सुन्दर
है, बड़ी भली है,
बड़ी भोली है।” तोते
ने उसकी बात काटकर
शरारत से कहा, “तुम
जैसी?”
मैना शर्मा गई।
बोली, “तुम्हें हर
घड़ी मजाक
सूझता है।” तोते ने
कहा, “अच्छा,
अपनी बात कहो।”
मैना बोली,
“राजकुमारी बहुत
दिनों से बीमार है।
दुनिया भर के वैद्य-
डाक्टर उसका इलाज
कर चुके हैं, पर वह
ठीक नहीं होती।
बेचारा राजा परेशा
है। उसके
वही अकेली औलाद
है।” तोते ने कहा,
“यह
तो बड़ी हैरानी की
है।”
“हैरानी की बात
तो है ही।” मैना ने
व्यथित स्वर में कहा,
“राजा ने यहां तक
ऐलान कर दिया है
कि जो कोई
राजकुमारी को अच्छ
देगा, वह उसी से
बेटी का ब्याह कर
देगा।
राजकुमारी को पाने
के लालच में
दुनिया भर के
चिकित्सक आ रहे हैं,
पर कोई भी उसे ठीक
नहीं कर पाया।
राजा निराश
हो गया है।”
इतना कह कर
मैना की आवाज रुक
गई। तोता बोला,
“राजकुमारी की बी
करने का कोई
रास्ता है?”
“रास्ता है!”मैना ने
कहा,”अगर कोई
सुनता हो तो इस पेड़
की जड़ ले जाये और
उसे घिस कर पानी में
मिलाकर
राजकुमारी को पिल
वह रोग से
छुटकारा पा जायेगी।”
यह कहकर मैना मौन
हो गई।
तोता भी कुछ
नहीं बोला। पर
राजकुमार उठा और
उसने अपने भाले से एक
ओर मिट्टी खोद कर
पेड़ की थोड़ी-सी जड़
काट ली और आकर
अपने बिस्तर पर लेट
गया। सवेरा हुआ।
दोनों मित्र उठे और
तैयार होकर आगे बढ़
गये। आगे उन्हें
वही नगर मिला,
जिसकी चर्चा मैना ने
की थी। शहर में
बार-बार
मुनादी हो रही थी
देगा, राजा उसके
साथ
राजकुमारी को ब्या
देगा और
अपना आधा राज्य दे
देगा।
राजकुमार ने
अपना घोड़ा महल के
फाटक की ओर
बढ़ा दिया। वजीर के
लड़के ने उसे
रोकना चाहा, पर
वह कहां मानने
वाला था। फाटक पर
जब चौकीदार ने उसे
रोका तो उसने कहा,
“मैं
राजकुमारी का इला
करूंगा।” राजकुमार
को राजा के सामने
पेश किया गया।
राजा ने कहा, “बड़े-
से-बड़े वैद्य
इसका इलाज कर गये
हैं, पर
मेरी प्यारी बेटी को
भी अच्छा नहीं कर
सका।” राजकुमार
कुछ बोला नहीं।
थोड़ा पानी लेकर
उसने जड़
को घिसा और बेहाश
पड़ी राजकुमारी के
होठों पर
लगा दिया।
पानी का लगाना था
बदन में कुछ हलचल
हुई। राजकुमार ने
फिर
थोड़ा पानी उसके मुंह
से लगाया तो उसने
आंखें खोल दीं। यह देख
कर राजा का रोम-
रोम पुलकित
हो उठा। उसने
राजकुमार को सीने से
लगा लिया। कुछ
ही देर में
राजकुमारी उठकर
बैठ गई और चलने-
फिरने लगी।
अपनी शर्त के अनुसार
राजा ने कहा, “अब
तुम मेरी बेटी को और
मेरे आधे राज्य
को ग्रहण करो।”
राजकुमार ने
राजकुमारी के
अच्छा हो जाने पर
प्रसन्नता व्यक्त
करते हुए
राजा को अपनी प्रत
सुनकर राजा ने
कहा,”कोई बात
नहीं है। तुम
अपनी प्रतिज्ञा पूर
लौटो तो बेटी को स
ले जाना और मन
हो तो यहीं राज
करना।” सारे नगर में
शोर मच गया।
प्रजा ने राजकुमार
को घेर लिया।
राजा ने
बड़ी कठिनाई से
लोगों को रोका और
बड़े मान-सम्मान से
राजकुमार
को विदा देते हुए
कहा, “यहां से दस
कोस पर पश्चिम में,
एक बाबा गुफा में
रहते हैं। तुम उनसे
मिलते जाना। वह
तुम्हारी मदद
करेंगे।”
राजकुमार महल से
बाहर आया तो वजीर
का लड़का उसकी राह
देख रहा था। उसे
सारा समाचार मिल
गया था। उसने
राजकुमार को सीने से
लगाकर कहा, “यह
क्या चमत्कार हुआ?”
राजकुमार ने उसे
पिछली रात
की घटना सुनाकर
कहा, “इस
दुनिया में, सचमुच
कभी-कभी चमत्कार
हो जाता है। न हम
उस पेड़ के नीचे
ठहरते, न यह
करिश्मा होता। हमें
तोता-
मैंना का उपकार
मानना चाहिए।”
राजा ने उन्हें
बाबा से मिलने
को कहा था।
राजकुमार ने
उसी दिशा में
प्रस्थान किया। दस
कोस पर उन्हें
वही गुफा मिल गई।
उसमें बाबा बैठे थे।
राजकुमार घोड़े से
उतर कर उनके पास
गया और उन्हें प्रणाम
करके सामने
खड़ा हो गया।
बाबा आंखें बंद किये
बैठे थे। थोड़ी देर में
उन्होंने आंखें खोलीं और
जिज्ञासा भाव से
कहा, “कैसे आये हो?”
राजकुमार ने
सारा हाल सुना कर
कहा, “राजा ने
कहा था कि मैं आपके
दर्शन करूं।”
बाबा बड़ी आत्मीयत
बोले, “वत्स, तुमने
काम बड़ा कठिन और
जोखिम
भरा उठाया है।”
राजकुमार ने कहा,
“बाबा, काम कठिन
जरूर है, लेकिन
आदमी तो बना ही क
काम करने के लिए
है।” बाबा की आंखें
चमक उठीं। बोले,
“तुमने ठीक कहा।
जो कठिन काम से बचे
वह आदमी कैसा!” कुछ
रुक कर उन्होंने कहा,
“अब तुम सिंहल द्वीप
के पास आ गये हो,
लेकिन वहां पहुंचने के
लिए तुम्हें महासागर
पार करना होगा।
कैसे करोगे?”
राजकुमार ने कोई
झिझक नहीं दिखाई।
बोला, “बाबा,
जो शक्ति मुझे
यहां तक ले आई है,
वही शक्ति इस
कठिनाई
का भी रास्ता निका
“शाबाश,वत्स”
बाबा ने विभोर
होकर
कहा,‘‘आदमी तो निम
है। काम
शक्ति ही कराती है।
इतना कहकर बाबा ने
खड़ाऊं की एक
जोड़ी उसे देते हुए
कहा, “इन्हें पहन कर
तुम सहज ही समुद्र
पार कर जाओगे।
जाओ, मेरा आशीर्वाद
तुम्हारे साथ
रहेगा।” राजकुमार
ने अत्यन्त कृतज्ञ भाव
से बाबा के चरणों में
सिर रखा और
बाबा ने समुद्र पार
करने के लिए खड़ाऊ
की जोड़ी दी।
उसकी पीठ
थपथपाकर उसे
आशीर्वाद देकर
विदा किया।
घोड़ों पर सवार
होकर जब वे चले
तो राजकुमार भाव-
विह्वल हो रहा था।
उसने वजीर के लड़के से
कहा,‘‘राजा बड़ा उद
था। उसके साथ
जो हुआ,
उसका बदला उसने
चुका दिया।
इतनी बड़ी समस्या क
ही हल कर दिया।”
दोनों आगे बढ़े।
उनकी अब विशाल
सागर को देखने के
लिए आतुरता थी। पर
सहसा एक चिन्ता ने
राजकुमार को आ
घेरा। वह तो खड़ाऊं
की मदद से सागर
पार कर लेगा, पर
उसके
साथी का क्या होगा
उसने वजीर के लड़के से
कहा, “मित्र, आगे
की लड़ाई अब मुझे
अकेले
को ही लड़नी पड़ेगी।
जबतक मैं लौट कर
नहीं आऊं, तुम
यहीं रुके रहोगे।”
वजीर
का लड़का हतप्रभ
हो गया। यह कैसे
होगा?
अकेला राजकुमार कैसे
उस किले को फतह कर
सकेगा? जब उसने
राजकुमार से
अपनी आशंका व्यक्त
की तो राजकुमार ने
उसे धीरज बंधाते हुए
कहा, “तुम
चिन्ता मत करो। आगे
के लिए मेरे पास सारे
साधन हैं।” फिर
इधर-उधर की बातें
करते हुए वे आगे बढ़ते
गये। राजकुमार
का मन परेशान था।
वजीर
का लड़का भीतर-
ही-भीतर परेशान
था। यदि राजकुमार
को कुछ
हो गया तो वह
राजा को कैसे मुंह
दिखायेगा?
राजकुमार हिम्मत से
आगे बढृ रहा था।
साथी का दिल बैठ
रहा था। दिन भर
चलने के बाद अंत में
उन्हें दहाड़ता सागर
सामने दिखाई पड़ा।
बड़ी-बड़ी लहरें उठ-
उठकर एक भयानक
दृश्य प्रस्तुत कर
रही थीं। तट पर
पहुंच कर
दोनों घोड़ों से उतर
पड़े और निर्निमेष
नेत्रों से सागर
की विशाल जल-
राशि को देखने लगे।