राजकुमार का अदम्य साहस-3

राजकुमार ने चलते-
चलते कहा, “यह
तो पहला पड़ाव था,
अभी तो जाने कितने
पड़ाव और आयेंगे।”
वजीर
का लड़का गंभीर
होकर बोला,
“यहां से तो हम
राजी-खुशी निकल
आये, पर आगे हमें
होशियार
रहना चाहिए।” वे
लोग उस जादुई बाग
से कुछ ही दूर गये
होंगे कि आसमान में
काले-काले बादल
घिर आये। खूब जोर
की वर्षा होने लगी।
वे एक घर में रुक गये।
दोनों रात-भर के जगे
थे। राजकुमार लेट
गया और गहरी नींद
में सो गया। वजीर के
लड़के को नींद
नहीं आई। वह
बैठा रहा। अचानक
देखता क्या है
कि बराबर के कमरे से
एक काला नाग आया।
यह उसी का घर था।
अपने घर में उन
अजनबी आदमियों को
वह गुस्से से आग-
बबूला हो गया। बड़े
जोर की फुंफकार मार
कर वह राजकुमार
की ओर बढ़ा।
राजकुमार तो बेखबर
सो रहा था। वजीर
के लड़के ने म्यान से
तलवार निकाल कर
सांप पर वार
किया और उसके
दो टुकड़े कर डाले,
फिर तलवार से उसे
एक कोने में पटक
दिया। बाहर अब
भी पानी पड़
रहा था। वजीर
का लड़का उठकर घर
के दरवाजे पर आ
खड़ा हुआ। थोड़ी देर
बाहर
का नजारा देखता रह
सोचने लगा कि बैठे-
ठाले राजकुमार ने यह
क्या मुसीबत मोल ले
ली।
अच्छा होगा कि अब
भी उसका मन फिर
जाये और हम वापस
लौट जायें, पर वह
राजकुमार
को जानता था। वह
बड़ा हठी था।
जो सोच लेता था,
उसे पूरा करके
रहता था। और न
जाने क्या-
क्या विचार उसके
दिमाग में चक्कर
लगाते रहे। पानी थम
गया तो उसने
राजकुमार
को जगाया।
राजकुमार उठ बैठा।
बोला, “बड़े जोर
की नींद आ गई। अगर
तुम जगाते नहीं तो मैं
घंटों सोता रहता।”
तभी उसकी निगाह
एक ओर की पड़े
नागराज पर गई। वह
चौंक कर
खड़ा हो गया और
विस्मित आवाज में
बोला, “यह क्या?”
वजीर के लड़के ने
सारा हाल सुनाते हुए
कहा, “वह
तो अच्छा हुआ कि मुझे
नींद नहीं आई। अगर
सो गया होता तो य
नाग हम
दोनों को डस
लेता और हमारा सफर
यहीं खत्म
हो गया होता।”
राजकुमार वजीर के
लड़के के मुंह से
सारी दास्तान
सुनकर बोला,
“मित्र, जिसे भगवान
बचाता है, उसे कोई
नहीं मार सकता! यह
भी याद रक्खो, हम
लोग एक बड़े काम के
लिए निकले हैं। जबतक
वह काम
पूरा नहीं हो जायेगा
हमारा बाल
बांका नहीं होगा।”
वजीर के लड़के ने
इसका कोई जवाब
नहीं दिया। दोनों ने
सामान संभाला,
घोड़ों पर ज़ीन कसे
और आगे बढ़ चले।
चलते-चलते एक
तालाब आया। सूरज
सिर पर आ गया था।
आसमान एकदम
निर्मल हो गया था।
वहां वे रुक गये।
भोजन किया।
थोड़ी देर विश्राम
किया। फिर आगे चल
दिये।
आगे एक
बड़ा घना जंगल था।
इतना घना कि हाथ
को हाथ
नहीं सूझता था। उसमें
जंगली जानवर निडर
होकर घूमते थे। डाकू
छिपे रहते थे। वहां से
निकलना हंसी खेल
नहीं था। जब उन्हें
यह
जानकारी मिली तो
के लड़के का दिल दहल
उठा। उसने
राजकुमार की ओर
देखा, पर राजकुमार
तो जान हथेली पर
लेकर महल से
निकला था। उसने
कहा, “अगर हम इन
छोटी-
छोटी बातों से
घबरा जायेंगे तो कैसे
काम चलेगा?”
दोनों उस जंगल में
घुसे।
जैसा बताया था,
वैसा ही उन्होंने उसे
पाया।
अंधियारी रात-का-
सा अंधकार फैला था।
आगे-आगे राजकुमार,
पीछे वजीर
का लड़का।
जानवरों की नाना प्
की आवाजें आ
रही थीं,
पक्षी कलराव कर रहे
थे। वे लोग
बड़ी सावधानी से आगे
बढ़ रहे थे। अचानक
उन्हें दो चमकती आंखें
दिखाई दीं।
राजकुमार ने अपने
घोड़े को रोक लिया।
खड़े होकर
देखा तो सामने एक
बाघ खड़ा था।
क्षणभर में उन
दोनों का खात्मा हो
वाला था। पर मौत
सामने आ
जाती तो कायर
भी शूर बन जाता है।
वजीर के लड़के ने आव
देखा न ताव, घोड़े
पर से कूदा और
तलवार से उस पर बड़े
जोर का वार किया।
राजकुमार ने भी भाले
से उस पर
हमला किया। बाघ
वहीं ढेर हो गया।
अब तो दोनों और
बाघ पर तलवार से
वारभी चौकन्ने
हो गये। बहुत से
जानवर उनके पास से
गुजरे, पर वे उतने
खूंखार नहीं थे।
घोड़ों को देखकर
रास्ते से हट गये। वे
लोग पल-भर
को भी नहीं रुके।
उन्हें पता नहीं चल
रहा था कि वे
कितना जंगल पार कर
चुके हैं। सूरज ने
भी वहां हार मान
ली थी। उन्हें डर
था कि कहीं रात न
हो जाय। रात में
जंगली लोमड़ी भी शेर
बन जाती है।
जंगली सूअर, नील
गाय, भैंसे, शेर, चीते
इधर-उधर विचरण
करने लगते हैं, पर
वहां तो रात-दिन
एक-सा था। उजाले
का कहीं नाम
नहीं था। उन
दोनों ने हिम्मत
नहीं हारी। उनके
हौसले के सामने जंगल
ने हार मान ली।
जंगल समाप्त हुआ,
खुला मैदान आ गया।
दिन ढल गया था।
मारे थकान के
दोनों पस्त हो रहे
थे। वजीर के लड़के ने
कहा, “अब हम
यहीं कोई अच्छी जगह
देखकर ठहर जायें। हम
लोगों की ताकत
जवाब दे रही है और
हमारे घोड़े भी पसीने
से तर-बतर हो रहे
हैं।” राजकुमार ने
उसके प्रस्ताव
को मान लिया। कुछ
कदम आगे बढ़ने पर
पेड़ों के एक झुरमुट में
उन्होंने डेरा डाला।
पास में कुंआ था। उससे
पानी लेकर स्नान
किया। ताजा होकर
खाना खाया। वजीर
के लड़के ने कहा, “मैं
बहुत थक गया हूं। आज
की रात मैं खूब
सोऊंगा, आप
पहरा देना।”
राजकुमार बोला,
“ठीक है!”
दोनों अपने-अपने
बिस्तरों पर लेट गये।
पर थके होने पर
भी वजीर के लड़के
की आंख नहीं लगी।
वह चुपचाप बिस्तर
पर पड़ा रहा।
राजकुमार थोड़ी देर
चौकीदारी करके
जैसी ही बिस्तर पर
लेटा कि नींद ने आकर
उसे घेर लिया। वह
सो गया।
वजीर के लड़के ने यह
देखा तो उसे बड़े
गुस्सा आया, पर वह
कर क्या सकता था।
राजकुमार
राजा का बेटा था औ
वह उसका चाकर था।
राजकुमार
की रक्षा करना उसक
था और इसी के लिए
वह उसके साथ
आया था। जैसे-तैसे
सवेरा हुआ। वजीर के
लड़के ने राजकुमार
को जगाया। आंखें
मलता राजकुमार
उठा और दिन के
उजाले को लक्ष्य करके
बोला, “मैंने बहुत
कोशिश
की कि जागता रहूं,
पर मैं इतना थक
गया था कि न चाहते
हुए भी मेरी पलकें
भारी हो गईं और
नींद ने मुझे
अपनी गोद में ले
लिया।” वजीर के
लड़के को उस पर अब
क्रोध नहीं, दया आई
और उसने कहा, “कोई
बात नहीं है।” फिर
राजकुमार का दिल
रखने के लिए
मुस्करा कर
कहा,”ईश्वर
को धन्यवाद
दो कि रात को कोई
दुर्घटना नहीं हुई।
अनजानी जगह
का आखिर
क्या भरोसा कि कब
क्या हो जाये!”
तैयार होकर वे फिर
आगे बढ़े।
चलते-चलते
काफी समय हो गया।
आगे उन्हें एक नगर
दिखाई दिया। उसे
देखकर वजीर के लड़के
का माथा ठनका।
राजकुमार तो भूल
गया था,पर उसे याद
था।
परियों की राजकुमा
कहा था कि रास्ते में
जादू की एक
नगरी पड़ेगी। हो न
हो,यह
वहीं नगरी है। उसने
राजकुमार से
कहा,”हम इस
नगरी के किनारे के
रास्ते से निकल चलें।
बस्ती में न जायें।”
राजकुमार ने तुनककर
कहा,”इतने दिनों से
हम जंगलों और
मैदानों में घूम रहे हैं।
जैसे-तैसे तो एक नगर
आया है और तुम कहते
हो, इससे बचकर
निकल चलें! नहीं, यह
नहीं होगा।”
राजकुमार
की इच्छा के आगे
वजीर का लड़का झुक
गया और दोनों ने
नगरी में प्रवेश
किया।
नगरी की बनावट और
सजावट को देखकर
राजकुमार मुग्ध रह
गया। बोला, “वाह,
ऐसी नगरी को देखने
के आनंद से तुम वंचित
होना चाहते थे! ऐसे
घर, ऐसे महल, ऐसे
बाग-बगीचे,
कहां देखने को मिलते
हैं?” अपने-अपने
घोड़ों पर सवार
दोनों नगर के भीतर
बढ़ते गये। अकस्मात्
भांति-भांति के
फूलों और लता-
गुल्मों से सजे एक
बगीचे को देखकर
राजकुमार अपने घोड़े
पर से उतर पड़ा और
बगीचे
की शोभा को निहार
लगा। तभी सामने के
घर से एक
बुढ़िया दौड़ी आई और
राजकुमार से लिपट
कर फूट-फूट कर रोने
लगी।
रोना रुका तो बोली
“मेरे बेटे, तुम
कहां चले गये थे?”
राजकुमार भौंचक्का-
सा रह गया। यह
माजरा क्या है? उसने
बुढ़िया की बांहों से
अपने को छुड़ाने
की कोशिश की, पर
बुढ़िया ने उसे
इतना जकड़
रखा था कि वह अपने
को छुड़ा नहीं पाया।
बुढ़िया फिर बिलखने
लगी। राजकुमार
को उस पर दया आ
गई। बोला, “तुम
चाहती क्या हो?”
सिसकते हुए बढ़िया ने
कहा, “थोड़ी-सी देर
को मेरे घर के भीतर
चलो।”
इतना कहकर उसने
राजकुमार का हाथ
पकड़ लिया।
अपना पीछा छुड़ाने के
लिए राजकुमार उसके
घर जाने को तैयार
हो गया। वजीर के
बेटे ने मना किया,
पर वह नहीं माना।
उसने वजीर के लड़के से
कहा, “तुम
यहीं रहो, मैं
अभी आता हूं।”
इतना कहकर वह
बुढ़िया के साथ चल
दिया। सामने के घर
का दरवाजा खुला था
ज्योंही वे अंदर घुसे
कि दरवाजा बंद
हो गया।