राजकुमार का अदम्य साहस-2

वह
पानी नहीं, गुलाबजल
था। उसकी खुशबू से
सारा बाग महक
उठा।
अब तो उन
दोनों की नींद उड़
गई और वे आंखें गड़ाकर
देखने लगे कि आगे वे
क्या करती हैं।
हवा में उड़ती एक
परी आ
रही थी उसी समय
कुछ परियां और आ
गईं। उनके हाथों में
कीमती कालीन थे।
देखते-देखते उन्होंने वे
कालीन बिछा दिये।
फिर जाने
क्या किया कि वह
सारा मैदान
रोशनी से
जगमगा उठा। अब
तो इन दोनों के
प्राण मुंह को आ गये।
उस रोशनी में कोई
भी उन्हें देख
सकता था। उस
जगमगाहट में उन्हें
दिखाई दिया कि एक
ओर से दूध जैसे फव्वारे
चलने लगे हैं।
पेड़ों की हरियाली अ
बड़ी ही मोहक लगने
लगी। जब वे
दोनों असमंजस में डूबे
उस दृश्यावली को देख
रहे थे, आसमान से कुछ
परियां एक रत्न-
जटिलत सिंहासन
लेकर उतरीं और
उन्होंने उस सिंहासन
को एक बहुत
ही कीमती कालीन
पर रख दिया।
सारी परियां मिलक
एक पंक्ति में
खड़ी हो गईं।
राजकुमार ने
अपनी आंखें मलीं।
कहीं वह
सपना तो नहीं देख
रहा था! वजीर
का लड़का बार-बार
अपने को धिक्कार
रहा था कि उसने
राजकुमार की बात
क्यों मानी। पर अब
क्या हो सकता था!
आसमान में गड़गड़ाहट
हुई। दोनों ने ऊपर
को देखा तो एक
उड़न-खटोला उड़ा आ
रहा था। “यह
क्या?” राजकुमार
फुसफुसाया। वजीर के
लड़के ने अपने
होठों पर
उंगली रखकर चुपचाप
बैठे रहने का संकेत
किया। उड़न-
खटोला धीर-धीरे
नीचे उतरा और उसमें
से सजी-धजी एक
परी बाहर आई। वह
उन
परियों की मुखिया थ
सारी परियों ने
मिलकर
उसका अभिवादन
किया और बड़े आदर
भाव से उसे सिंहासन
पर आसीन कर दिया।
थोड़ी देर
खामोशी छाई रही।
फिर मुखिया ने
ताली बजाई। एक
परी आगे बढ़कर उसके
सामने खड़ी हो गई।
मुखिया ने
बड़ी शालीनता से
कहा, “जाओ,
उसको लाओ।”
“जो आज्ञा!” कहकर
वह परी वहां से चल
पड़ी और उसी ओर आने
लगी, जहां पेड़ पर
राजकुमार और वजीर
का लड़का बैठे थे।
दोनों की जान सूख
गई। वे अपने भाग्य में
क्या लिखाकर आये थे
कि ऐसे संकट में फंस
गये!
परी उसी पेड़ के नीचे
आई और राजकुमार
की ओर इशारा करके
कहा, “नीचे उतरो।
हमारी राजकुमारी
तुम्हें याद किया है।”
राजकुमार
हिचकिचाया।
उसकी हिचकिचाहट
देखकर परी ने कहा,
“जल्दी उतर आओ।
हमारी राजकुमारी
देख रही हैं। कोई
चारा नहीं था।
राजकुमार नीचे
उतरा और परी के
साथ हो लिया।
दोनों राजकुमारी के
पास पहुंचे।
राजकुमारी ने सरक
कर सिंहासन पर जगह
कर दी और कहा,
“आओ, यहां बैठ
ज़ाओ।” राजकुमार ने
उसकी बात सुनी,पर
उसकी बैठने
की हिम्मत न हुई।
राजकुमारी ने
थोड़ी देर चुप रहकर
कहा, “तुम कौन
हो?” राजकुमार ने
धीरे से कहा, “मैं
राजगढ़ के
राजा का बेटा हूं।”
“तो तुम राजकुमार
हो!” राजकुमार ने
मुस्कराकर कहा।”
राजकुमार चुपचाप
खड़ा रहा।
राजकुमारी ने कहा,
“देखो, यहां से
कोसों दूर
हमारा राज है। मैं
वहां की राजकुमारी
बहुत दिनों से इंतजार
कर रही थी कि कोई
राजकुमार यहां आये।
आज तुम आ गये।”
इतना कहकर
राजकुमारी राजकुमा
की ओर एकटक देखने
लगी। राजकुमार
को लगा कि वह
बेहोश होकर गिर
पड़ेगा, पर उसने अपने
को संभाला।
राजकुमारी की मुस्क
और चौड़ी हो गई।
बड़े मधुर शब्दों में
बोली, “तुम्हें मुझसे
विवाह
करना होगा।”
राजकुमार पर
मानो बिजली गिरी।
उसने कहा, “यह
नहीं हो सकता।”
“क्यों?”
राजकुमारी ने
थोड़ा कठोर होकर
पूछा। “इसलिए कि,”
राजकुमार ने कहा,
“मैं
रानी पद्मिनी की त
में निकला हूं। मैंने
प्रतिज्ञा की है
कि जबतक वह
नहीं मिल जायेगी, मैं
अपने महल का अन्न-
जल ग्रहण
नहीं करूंगा।” “ओह!
यह बात है?”
राजकुमारी ने बड़े
तरल स्वर में कहा,
“मैं
नहीं चाहूंगी कि तुम
अपनी प्रतिज्ञा को
प्रतिज्ञा बड़ी पवि
होती है। उसे
तोड़ना नहीं चाहिए।
तुम
अपनी प्रतिज्ञा पूर
मैं उसमें तुम्हारी मदद
करूंगी। पर एक शर्त
पर।”
राजकुमार ने कहा,
“वह शर्त क्या है?”
राजकुमार बोली,
“पद्मिनी को लेकर
तुम यहां आओगे और मेरे
साथ शादी करके अपने
राज्य को जाओगे।”
राजकुमार ने कहा,
“इसमें मुझे
क्या आपत्ति हो सकत
राजकुमारी थोड़ी दे
मौन रही, फिर
बोली, “तुम सिंहल
द्वीप चहुंचोगे कैसे?”
राजकुमार ने कहा,
“क्यों, उसमें
क्या दिक्कत है!”
राजकुमारी हंसने
लगी। हंसते-हंसते
बोली, “तुम बड़े भोले
हो। अरे,
वहां पहुंचना हंसी-
खेल नहीं है। रास्ते में
एक जादू
की नगरी पड़ती है।
सिंहल द्वीप
का रास्ता वहीं से
होकर जाता है। कोई
भी तुम्हें अपने जादू में
फंसा लेगा।” “तब?”
राजकुमार ने हैरान
होकर कहा।
राजकुमारी बोली,
“तुम उसकी चिन्ता न
करो। यह लो, मैं तुम्हें
एक अंगूठी देती हूं।
तुम जबतक इसे
अपनी उंगली में पहने
रहोगे, तुम पर
किसी का जादू असर
नहीं करेगा।”
इतना कहकर
राजकुमारी ने एक
अंगूठी उसकी ओर
बढ़ा दी। राजकुमार
ने कहा,
“राजकुमारी मैं,
तुम्हारा अहसान
कभी नहीं भूलूंगा।”
राजकुमारी बोली,
“इसमें अहसान
की क्या बात है!
इंसान को इंसान
की मदद
करनी ही चाहिए।
राजकुमारी एक
अंगूठी उसे दे दी।
तुम्हारी यात्रा सफ
हो,
तुम्हारी प्रतिज्ञा
राजकुमार ने
उसका आभार मानते
हुए सिर झुका दिया।
रात बीतने
वाली थी।
राजकुमारी उठी और
अपने उड़न-खटोले पर
बैठकर चली गई।
परियों ने
सारा सामान
समेटा और वे
भी अपनी-
अपनी दिशा को प्रस्
कर गईं।
राजकुमारी से
विदा होकर
राजकुमार डगमगाते
पैरों से, पर खुश-खुश,
वहां आया,
जहां वजीर
का लड़का बड़ी व्यग्र
उसकी प्रतीक्षा कर
रहा था। राजकुमार
को सही-सलामत
लौट आया देखकर
वजीर के लड़के
की जान-में-जान
आई। वह पेड़ पर से
उतरा। राजकुमार ने
उसे आपबीती सुनाकर
कहा, “देखो, कभी-
कभी बुराई में से
भलाई निकल
आती है।” फिर
दोनों ने अपने-अपने
घोड़े तैयार किये और
उनपर सवार होकर
चल पड़े। जैसे हीफाटक
पर आये कि वह खुल
गया। दोनों बाहर
हो गये।