एक राज्य
का राजा बेहद
कठोर और
जिद्दी था। वह
एक बार
जो निर्णय ले
लेता था, उसे
बदलने
को तैयार
नहीं होता था।
एक बार उसने
प्रजा पर
भारी कर
लगाने
की योजना मंत्री
के सामने रखी।
मंत्रियों को यह
प्रस्ताव
अन्यायपूर्ण
लगा। उसने इससे
अपनी असहमति
राजा क्रोधित
हो उठा। उसने
मंत्रिपरिषद
को समाप्त
करने
का फैसला किया
यही नहीं, उसने
सारे
मंत्रियों के देश
निकाले
का आदेश दे
दिया।
मंत्री घबराए।
वे समझ
नहीं पा रहे थे
कि इस
स्थिति का सामना कैसे
किया जाए।
तभी उन्हें
विक्रम नाई
की याद आई।
वह
राजा का प्रिय नाईँ
था। उसने पहले
भी कई
मौकों पर
राजा का क्रोध
शांत किया था।
उसे
बुलाया गया।
मंत्रियों ने उसे
सारी स्थिति उसे बताई
और
प्रार्थना की
ऐसा कुछ करे
जिससे
राजा को सद्बुद्धि प्राप्त हो
विक्रम ने यह
चुनौती स्वीकार
कर ली। वह
राजा के पास
उनके नाखून
काटने गया।
राजा ने
अपनी अंगुलियां
कर दीं।
विक्रम ने
नखों पर गुलाब
जल छिड़का और
धीरे-धीरे नख
काटने लगा।
फिर उसने कहा,
‘महाराज,
शरीर में इन
नखों की आवश्यकता क्या है
वे बढ़ते रहते हैं
और उन्हें बार-
बार
काटना पड़ता
इनमें रोगों के
कीटाणु
भी रहते हैं।
क्यों न इन्हें जड़
से उखाड़ कर फेंक
दिया जाए?’
राजा ने
मुस्कराते हुए
कहा, ‘वो तो है,
लेकिन इन्हें
उखाड़कर मत
फेंक देना। ये
तो हाथ-
पैरों की शोभा
भले
ही इनका
उपयोग न हो,
पर ये आभूषण
तुल्य हैं।’ इस पर
विक्रम ने कहा,
‘महाराज
रोगों का घर
होते हुए भी ये
हाथ-
पैरों की शोभा
ठीक उसी तरह
मंत्रिपरिषद
राज्य
की शोभा है।
मंत्री भले
ही आपके
किसी कार्य
का विरोध करें,
पर
आपकी शोभा
है।’
यह सुनते
ही राजा को अपनी भूल
ज्ञात हुई। विक्रम ने
विनम्रतापूर्व
कहा, ‘राज्य
की सेवा में
उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
उनके बगैर
राज्य
बिना नखों के
हाथ की तरह
हो जाएगा।’
राजा समझ
गया। उसने
अपना आदेश
वापस लेकर
मंत्रियों को फिर
से
उनका दायित्व
सौंप दिया।
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