Saturday 3 December 2011

मुँडन का पर्व(पंचतंत्र)

एक बार एक परम
शक्तिशाली और
यशस्वी प्रतापी राजा था।
उसका नाम नंद था। उसके
मंत्री का नाम वररुचि था।
वह
सभी शास्रों का ज्ञाता और
विचारक था। वह
अपनी पत्नी को बहुत
चाहता था।
एक बार किसी बात पर
उसकी पत्नी से उसका कुछ
झगड़ा हो गया। पत्नी उससे
नाराज हो गई और अनशन
करके प्राण देने पर तुल गई।
वररुचि ने उसे बहुत
मनाया और पूछा, ‘बताओ- मैं
तुम्हारी खुशी के लिए
क्या करूं?’ पत्नी ने कहा- ‘तुम
अपना सिर मुंडवाओ और मेरे
चरणों में प्रणाम करो।’
वररुचि ने ऐसा ही किया।
उसकी पत्नी प्रसन्न हो गई।
इसी प्रकार एक बार
राजा नंद
की पत्नी भी क्रोध करके
कलह मचाने लगी।
राजा भी अपनी पटरानी को बहुत
प्यार करता था। इसलिए
उसने उससे पूछा- ‘तुम्हें प्रसन्न
करने के लिए मैं क्या करुं?’
पत्नी बोली-‘तुम घोड़े
की तरह अपने मुंह में लगाम
लगा लो। फिर मैं तुम पर
सवारी करुंगी। तब तुम घोड़े
की तरह हिनहिनाना!’
राजा नंद ने विवश होकर
पत्नी को प्रसन्न करने के
लिए ऐसा ही किया। अगले
दिन राजसभा ने नंद ने
महामंत्री वररुचि को मुंडित
केश देखकर पूछा-‘अरे
महामंत्री, तुमने किस पर्व
पर यह मुंडन करवा लिया?’
चतुर महामंत्री से कुछ
भी छिपा हुआ नहीं था। उसने
कहा-‘महाराज,
स्त्री की याचना पर
तो लोग घोड़े की तरह
हिनहिनाने भी लगते हैं, केश
मुंडाना तो कुछ भी नहीं है।’
राजा लज्जित होकर चुप रह
गया।

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