Monday 5 December 2011

त्याग और दयालुता का फल

एक समय की बात है कि एक
गांव में एक बहुत उदार
तथा दयालु
नन्हीं लड़की रहती थी। वह
थी तो अनाथ, पर
ऐसा लगता था जैसे
सारा संसार उसी का है। वह
सभी से प्रेम करती थी और
दूसरे सब भी उसे बहुत चाहते
थे।
पर दुख की बात यह
थी कि उसके पास रहने के लिए
कोई घर नहीं था। एक दिन
इस बात से वह इतनी दुखी हुई
कि उसने किसी को कुछ बताए
बिना ही अपना गांव छोड़
दिया। वह जंगल की ओर चल
दी। उसके हाथ में बस एक
रोटी का टुकड़ा था।
वह कुछ ही दूर गई
थी कि उसने एक बूढ़े
आदमी को सड़क के किनारे बैठे
देखा। वह बूढ़ा-बीमार-
सा लगता था। उसका शरीर
हड्डियों का ढांचा मात्र
था। अपने लिए स्वयं
रोटी कमाना उसके बस
का काम नहीं था। इसलिए
वह भीख मांग रहा था।
उसने आशा से लड़की की ओर
देखा।
‘‘ओ प्यारी नन्हीं बिटिया !
मैं एक बूढ़ा आदमी हूं।
मेरी देखभाल करने वाला कोई
नहीं है। मेहनत-मजदूरी करने
की मेरे शरीर में शक्ति नहीं,
तीन दिन से मैंने कुछ
नहीं खाया है। मुझ पर
दया करो और मुझे कुछ खाने
को दो।’’ वह
बूढ़ा व्यक्ति गिड़गिड़ाया।
नन्हीं लड़की स्वयं
भी भूखी थी। उसने
रोटी की टुकड़ा इसलिए
बचा रखा था ताकि खूब भूख
लगने पर खाए। फिर भी उसे
बूढ़े व्यक्ति पर दया आ गई।
उसने
अपना रोटी का टुकड़ा बूढ़े
को खाने के लिए दे दिया।
वह बोली-‘‘बाबा, मेरे पास
बस यह रोटी का टुकड़ा है।
इसे ले लो, काश ! मेरे पास और
कुछ होता।’’
इतना कहकर और
रोटी का टुकड़ा देकर व आगे
चल पड़ी। उसने मुड़कर
भी नहीं देखा।
वह कुछ ही दूर और आगे गई
थी कि उसे एक बालक नजर
आया, जो ठंड के मारे कांप
रहा था। उदार और दयालु
तो वह थी ही, उस ठिठुरते
बालक के पास जाकर
बोली-‘‘भैया, तुम तो ठंड से
मर जाओगे। मैं तुम्हारी कुछ
सहायता कर सकती हूँ ?’’
बालक ने दयनीय नजरों से
नन्हीं लड़की की ओर देखा-
‘‘हां दीदी ! यहां ठंड बहुत है।
सिर छुपाने के लिए घर
भी नहीं है मेरे पास।
क्या करूं ? तुम्हारी बहुत
कृपा होगी यदि तुम मुझे कुछ
सिर ढंकने के लिए दे दो।’’
छोटा बालक कांपता हुआ
बोला।
नन्हीं लड़की मुस्कुराई और
उसने अपने टोपी (हैट)
उतारकर बालक के सिर पर
पहना दी। बालक
को काफी राहत मिली।
‘‘भगवान करे, सबको तुम्हारे
जैसी दीदी मिले। तुम बहुत
उदार व कृपालु हो।’’ बालक ने
आभार प्रकट करते हुए कहा,
‘‘ईश्वर तुम्हारा भला करे।’’
लड़की मुंह से कुछ बोली नहीं।
केवल बालक की ओर प्यार से
मीठी-सी मुस्कराहट के साथ
देखकर आगे बढ़ गई।
वह सिर झुकाकर कुछ
सोचती चलती रही।
आगे जंगल में
नन्हीं लड़की को एक
बालिका ठंड से कंपकंपाती हुई
मिली, जैसे भाग्य
उसकी परीक्षा लेने पर
तुला था। उस छोटी-
सी बालिका के शरीर पर
केवल एक पतली-सी बनियान
थी। बालिका की दयनीय
दशा देखकर नन्हीं लड़की ने
अपना स्कर्ट उतार कर उसे
पहना दिया और ढांढस
बंधाया-‘‘बहना, हिम्मत मत
हारो। भगवान
तुम्हारी रक्षा करेगा।’’
अब नन्हीं लड़की ने तन पर
केवल स्वेटर रह गया था। वह
स्वयं ठंड के मारे कांपने लगी।
परंतु उसके मन में संतोष
था कि उसने एक ही दिन में
इतने सारे
दुखियों की सहायता की थी।
वह आगे चलती गई। उसके मन में
कोई स्पष्ट लक्ष्य
नहीं था कि उसे
कहां जाना है।
अंधेरा घिरने लगा था। चांद
बादलों के पीछे से लुका-
छिपी का खेल खेल रहा था।
साफ-साफ दिखाई
देना भी अब बंद हो रहा था।
परंतु नन्हीं लड़की ने अंधेरे
की परवाह किए
बिना ही अनजानी मंजिल
की ओर चलना जारी रखा।
एकाएक सिसकियों की आवाज
उसके कानों में पड़ी। ‘यह कौन
हो सकता है ?’ वह स्वयं से
बड़बड़ाई। उसने रुककर
चारों ओर आंखें फाड़कर देखा।
‘‘ओह ! एक नन्हा बच्चा !’’
नन्हीं लड़की को एक बड़े पेड़ के
पास एक छोटे से नंगे बच्चे
की आकृति नजर आ गई थी। वह
उस आकृति के निकट पहुंची और
पूछा-‘‘नन्हें भैया, तुम
क्यों रोते हो ? ओह हां,
तुम्हारे तन पर तो कोई
कपड़ा ही नहीं है। हे भगवान,
इस बच्चे पर दया करो। यह
कैसा अन्याय है कि एक
इतना छोटा बच्चा इस
सर्दी में नंगा ठंड से जम
रहा है !’’ उसका गला रुंध
गया था।
नन्हें बच्चे ने कांपते और
सिसकते हुए कहा-‘‘द-दीदी,
ब...बहुत कड़ाके की सर्दी है।
मुझ पर दया करो। कुछ मदद
करो।’’’‘‘हां-हां, नन्हे भैया।
मैं अपना स्वेटर उतारकर तुम्हें
दे रही हूं। बस यही कपड़ा है
मेरे पास। लेकिन तुम्हें
इसकी मुझसे अधिक जरूरत है।’’
ऐसा कहते हुए नन्हीं लड़की ने
स्वेटर छोटे बच्चे
को पहना दिया।
अब उसके पास तन पर कपड़े के
नाम पर एक
धागा भी नहीं रह गया था।
वह रुकी नहीं। चलती रही।
इसी प्रकार चलते-चलते वह
जंगल में एक खुली जगह
जा पहुंची। वहां से आकाश
दीख रहा था और दीख रहे थे
बादलों से लुका-
छिपी खेलता चांद तथा टिम-
टिम करते तारे।
अब सर्दी बढ़ गई थी और ठंड
असहनीय हो गई थी।
नन्हीं लड़की का शरीर
बुरी तरह कांपने लगा था और
दांत किटकिटा रहे थे।
उसने सिर उठाकर आकाश
की ओर देखा और एक आह भरी।
फिर आंखों में छलकते आंसुओं के
साथ वह
नन्हीं लड़की बोली-‘‘हे प्रभु,
मैं नहीं जानती कि कौन-
सी शक्ति मुझे यहां खींच लाई
है ! मैं यहाँ क्यों आई ! पर मुझे
विश्वास हो रहा है
कि यदि यहां से मैं तुमसे
विनती करूं तो तुम अवश्य
मेरी आवाज सुनोगे। मेरे सामने
फैली झील, आकाश की ओर उठते
ये सुन्दर-सुंदर पेड़ दूर नजर
आती बर्फ से
ढकी पर्वतों की चोटियां,
आकाश का चांद
तथा झिलमिलाते सितारे
तुम्हें अर्पित
मेरी प्रार्थना के
साक्षी है।’’ ऐसा कहते हुए वह
फफक कर रो पड़ी।
काफी समय बाद वह संयत
हुई। उसने फिर
प्रार्थना की-‘ईश्वर, क्या मैं
जान सकती हूं कि तुमने मेरे
माता-पिता क्यों छीन लिए
जबकि मुझे उनकी छत्र-
छाया की बहुत
आवश्यकता थी ? मुझे अनाथ
बनाकर तुम्हें क्या मिला ? इस
सारे ब्रह्मांड के तुम
स्वामी हो, पर मुझे रहने के
लिए एक छोटा-सा घर
भी नहीं मिला ?
क्या यही तुम्हारा न्याय है ?
यही नहीं तुमने मेरे हाथ
का वह रोटी का छोटा-
सा टुकड़ा भी ले लिया। इस
शीत भरी रात में तुम्हारे
संसार में इतने सारे छोटे-छोटे
बच्चे बेसहारा और बेघर बाहर
जंगल में पड़े भूखे नंगे ठिठुर रहे
हैं कि मुझे अपने भी एक-एक
करके उतारकर उन्हें देने पड़े।
परिणामस्वरूप मैं तुम्हारे
सामने वस्त्रहीन खड़ी हूं।’
नन्हीं लड़की सांस लेने के लिए
रुकी।
कुछ देर पश्चात उसने भर्राए
गले से उलाहना दी-‘मैंने
कभी तुमसे शिकायत नहीं की।
न ही तुम्हें कोसा परंतु
इसका अर्थ यह नहीं है
कि मेरी कोई भावनाएं
ही नहीं है या मेरा हृदय
पत्थर है। खैर, मेरे माता-
पिता की छोड़ो लेकिन...।’
नन्हीं लड़की न जाने कब तक
क्या-क्या शिकायत
करती रहती यदि ऊपर से एक
आवाज ने उसे टोका न होता।
ऊपर से आकाशवाणी हुई-‘‘ओ
प्यारी नन्हीं लड़की, मैं
तुम्हारा दुख समझता हूं।’’
लड़की ने चौंककर आकाश
की ओर निहारा।
आकाशवाणी जारी रही-‘‘...पर
क्योंकि तुम मेरी विशेष संतान
हो इसलिए मैंने तुम्हें
धरती पर विशेष प्रयोजन से
भेजा है। ऐसी संतान को कष्ट
सहने पड़ते हैं और घोर
परीक्षाओं से
गुजरना पड़ता है। मुझे तुम पर
गर्व है। तुमने
सारी परीक्षाएं
सफलतापूर्वक पार की हैं। अब
तुम सुंदर वस्त्रों से सजी हो,
जरा अपने बदन की ओर देखो।’’
नन्हीं लड़की ने अपने बदन
को निहारा तो दंग रह गई।
सचमुच वह अलौकिक रूप से
मनमोहक वस्त्रों से ढकी थी।
अब चौंकाने की बारी भगवान
की थी।
चमत्कार पर चमत्कार होने
लगे। नन्हीं लड़की के सामने
स्वादिष्ट व्यंजनों से सजे थाल
प्रकट हुए। आकाश से
घोषणा हुई-‘‘मेरी प्यारी बच्ची,
मैं तुम्हारे माता-
पिता को रात के भोजन पर
तुम्हारे पास भेजूंगा। वे एक
पूरी रात तुम्हारे साथ रहेंगे।
और हां, मैं वचन देता हूं
कि महीने में एक बार जब तुम
इस स्थान पर आओगी, तो वे
तुम्हारे साथ एक पूरी रात
रहेंगे।’’
नन्हीं लड़की की प्रसन्नता का पारावार
न रहा। जब उसने अगले
ही क्षण अपने माता-
पिता को अपने सामने खड़े
पाया। उन्होंने
अपनी बेटी को उठाकर
बारी-बारी से छाती से
लगा लिया और खूब
चूमा तथा रोए। खुशी के आंसू
तीनों की आंखों में झर रहे थे।
मां ने अपने हाथों से
नन्हीं लड़की को खाना खिलाना आरंभ
किया। तीनों ने साथ-साथ
भोजन किया। उस रात
नन्हीं लड़की सोई नहीं।
माता-पिता भी नहीं सोए।
उन्हें
भी अपनी बिटिया को बहुत
कुछ बताना था।
बातों ही बातों में रात
कटती रही।
पौ फटने से पहले एक और
चमत्कार हुआ।
वे तीनों आकाश और चांद-
सितारों को लेटे-लेटे निहारते
हुए बातें कर रहे थे। अकस्मात्
झिलमिलाते तारे टूट-टूट कर
आकाश से नीचे गिरने लगे। हर
तारा जो धरती पर आ
गिरा एक सोने के टुकड़े में बदल
गया।
मां ने मुस्कराकर बेटी की ओर
देखा-
‘‘प्यारी-प्यारी बिटिया।
पौ फटते ही हमें यहां से
जाना होगा। जितने सोने के
टुकड़े तुम बटोर सकती हो,
बटोर लो। अपने गांव लौटकर
अपने लिए एक प्यारा-सा घर
बनाना और सुख से रहना। हां,
एक बात और..।’’ उसने प्यार से
अपनी बेटी को सहलाते हुए
कहा-‘‘तुम्हारे नामकरण से
पहले ही हमारी मृत्यु हो गई
थी। प्रभु की कृपा से अब वह
काम हम कर सकते हैं। अब से
तुम्हारा नाम ‘मालती’
होगा।
अलविदा प्यारी बिटिया।
मालती अलविदा।’’ ऐसा कहते
हुए नन्हीं लड़की के माता-
पिता लुप्त होने लगे।
मालती ने जब तक उत्तर में
अलविदा करने के लिए हाथ
उठाया, तब तक वे दोनों लुप्त
हो चुके थे। फिर
भी नन्हीं मालती को यह
आसरा तो था ही कि वह कम
से कम महीने में एक बार
तो अपने माता-पिता से मिल
ही सकेगी। वह पूरी रात
उनके साथ बिता सकेगी।
वह काफी देर आकाश की ओर
ताकती रही।
फिर मालती अपने गांव लौट
आई और एक छोटा सुंदर-सा घर
बनवाकर उसमें सुख-चैन से रहने
लगी।
अब वह दुनिया की और कुछ
भी बात भूल जाए परंतु महीने
में एक बार जंगल की खुली जगह
पर जाकर अपने माता-
पिता के साथ नियत समय पर
रात बिताना नहीं भूलती।

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