Monday 5 December 2011

प्रिँछी एक परी की कहानी

परियों की थी एक
शहज़ादी ,
नाम था उसका ‘
प्रिंछी ‘ !
खुशियों का था
आशियाना उसका ,
ग़मों से
थी वो अनजानी !
खिलते फूलों-
सी मुस्कान
थी उसकी ,
महकती थी जिससे
बगिया सुहानी !
हँसते-खेलते बीत
रही थी उसकी ,
खुशियों से
भरी ज़िंदगानी !
एक दिन अनजाने में
’ प्रिंछी ‘ ,
आसमां से इस
धरती पर आई !
देख इस दुनिया की
खुबसूरती ,
पहले तो वो अति
हर्षाई ,
पर देख इंसान
की दशा ,
उस परी की आँख
भर आई !
भूखे-बेबस
लोगों की
तृष्णा उसे रास
ना आई !
दुःख से अनजान उस
परी के मन में ,
एकदम
मायूसी छाई !
उसने सोचा -
ये कैसी है दुनिया ,
जहाँ ऊंच-नीच
की है खाई !
रिश्तों की
उधेड़बुन में ,
यहाँ लड़ते है भाई-
भाई !
ईर्ष्या-द्वेष
की भावना यहाँ ,
इंसान के मन में है
समाई !
धर्मं और मज़हब के
नाम पर ,
यहाँ होती है बस
लडाई !
मासूम गरीब
बच्चों ने यहाँ ,
उतरन में हर
खुशी है पाई !
ज़िन्दगी की हर
खुशी पर इनकी ,
ग़मों की परछाई है
छाई !
ये कैसी है दुनिया ,
ये कैसे है लोग ,
कैसी है ये पीर
पराई ,
देख इस
दुनिया की हालत ,
‘ प्रिंछी ‘ कुछ समझ
ना पाई !
जब इंसानों की इस
दुनिया से ,
परियों के देश
वो लौट आई !
तब केवल एक
ही बात ,
उसके मन में है आई !
काश, इंसानों की
दुनिया भी ,
हम परियों-
सी होती !
न होता ऊंच-नीच
का भेद ,
न होता कोई
जातिवाद ,
न होती भूख और
बेबसी ,
न होता कोई
विकार !
मर्म देख इस
दुनिया का ,
उस
नन्ही परी की आँख
भर आई !
जो अब तक
थी ग़मों से
अनजानी ,
वो आज
उसकी परिभाषा
है जान पाई !

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