Tuesday 6 December 2011

और चाँद फूट गया

आशीष और रोहित के
घर आपस में मिले हुए
थे। रविवार के दिन
वे दोनों बड़े सवेरे
उठते ही बगीचे में आ
पहुँचे।
" तो आज कौन सा खेल
खेलें ?" रोहित ने
पूछा। वह छह वर्ष
का था और
पहली कक्षा में
पढ़ता था।
"कैरम से तो मेरा मन
भर गया। क्यों न हम
क्रिकेट खेलें ?" आशीष
ने कहा। वह
भी रोहित के साथ
पढ़ता था।
"मगर उसके लिये
तो ढेर सारे
साथियों की ज़रूरत
होगी और
यहाँ हमारे तुम्हारे
सिवा कोई है
ही नहीं।" रोहित
बोला।
वे कुछ देर तक सोचते
रहे फिर आशीष ने
कहा, "चलो गप्पें
खेलते हैं।"
"गप्पें? भ़ला यह
कैसा खेल होता है?"
रोहित को कुछ
भी समझ में न आया।
"देखो मैं बताता हूँ
आ़शीष ने कहा, "हम
एक से बढ़ कर एक
मज़ेदार गप्प हाँकेंगे।
ऐसी गप्पें जो कहीं से
भी सच न हों।
बड़ा मज़ा आता है इस
खेल में। चलो मैं ही शुरू
करता हूँ यह
जो सामने अशोक
का पेड़ है ना रात में
बगीचे के तालाब
की मछलियाँ इस पर
लटक कर झूला झूल
रही थीं। रंग
बिरंगी मछलियों से
यह पेड़
ऐसा जगमगा रहा था मानो लाल
परी का राजमहल।"
अच्छा! रोहित ने
आश्चर्य से कहा, "और
मेरे बगीचे में
जो यूकेलिप्टस
का पेड़ है ना इ़स पर
चाँद सो रहा था।
चारों ओर
ऐसी प्यारी रोशनी झर
रही थी कि तुम्हारे
अशोक के पेड़ पर
झूला झूलती मछलियों ने
गाना गाना शुरू कर
दिया।"
"अच्छा! कौन
सा गाना?" आशीष ने
पूछा।
"वही चंदामामा दूर
के पुए पकाएँ बूर के।"
रोहित ने जवाब
दिया।
"अच्छा! फिर
क्या हुआ?"
"फिर क्या होता,
मछलियाँ इतने ज़ोर
से
गा रही थीं कि चाँद
की नींद टूट गयी और
वह धड़ाम से मेरी छत
पर गिर गया।"
"फिर?"
"फिर क्या था, वह
तो गिरते ही फूट
गया।"
"हाय, सच! चाँद फूट
गया तो फिर उसके
टुकड़े कहाँ गये?"
आशीष ने पूछा।
वे तो सब सुबह-सुबह
सूरज ने आकर जोड़े और
उनपर काले रंग
का मलहम
लगा दिया।
विश्वास न
हो तो रात में देख
लेना चाँद पर काले
धब्बे ज़रूर दिखाई
देंगे।"
अच्छा ठीक है मैं रात
में देखने की कोशिश
करूँगा।" आशीष ने
कहा। वह एक
नयी गप्प सोच
रहा था।
"हाँ याद आया,
आशीष बोला,
"पिछले साल जब
तुम्हारे
पापा का ट्रांसफर
यहाँ नहीं हुआ
था तो एक दिन खूब
ज़ोरों की बारिश
हुई। इतनी बारिश
कि पानी बूँदों की बजाय
रस्से की तरह गिर
रहा था। पहले तो मैं
उसमें नहाया फिर
पानी का रस्सा पकड़
कर ऊपर चढ़ गया।
पता है
वहाँ क्या था?"
"क्या था?" रोहित
ने आश्चर्य से पूछा।
"वहाँ धूप खिली हुई
थी। धूप में नन्हें नन्हें
घर थे, इन्द्रधनुष के
बने हुए। एक घर के
बगीचे में सूरज आराम
से हरी-हरी घास
पर लेटा आराम कर
रहा था और नन्हंे-
नन्हें सितारे
धमाचौकड़ी मचा रहे
थे "
"सितारे
भी कभी धमाचौकड़ी मचा सकते
हैं?" रानी दीदी ने
टोंक दिया। न जाने
वो कब आशीष और
रोहित के पास आ
खड़ी हुई थीं और
उनकी बातें सुन
रही थीं।
"अरे दीदी, हम कोई
सच बात थोड़ी कह
रहे हैं।" रोहित ने
सफाई दी।
"अच्छा तो तुम झूठ
बोल रहे हो?"
रानी ने धमकाया।
"नहीं दीदी, हम
तो गप्पें खेल रहे हैं
और हम खुशी के लिये
खेल रहे हैं,
किसी का नुक्सान
नहीं कर रहे हैं।"
आशीष ने कहा।
"भला ऐसी गप्पें
हाँकने से
क्या फायदा जिससे
किसी का उपकार न
हो। मैने एक गप्प
हाँकी और
दो बच्चों का उपकार
भी किया।"
"वो कैसे ?"
दोनों बच्चों ने एक
साथ पूछा।
अभी अभी तुम
दोनों की मम्मियाँ तुम्हें
नाश्ते के लिये
बुला रही थीं। उन्हें
लगा कि तुम लोग
बगीचे में खेल रहे होगे
लेकिन मैने गप्प
मारी कि वे लोग
तो मेरे घर में बैठे
पढ़ाई कर रहे हैं।
उन्होंने मुझसे तुम
दोनों को भेजने के
लिये कहा हैं।
यह सुनते ही आशीष
और रोहित गप्पें भूल
कर अपने-अपने घर
भागे। उन्हें डर लग
रहा था कि मम्मी उनकी पिटाई
कर देंगी लेकिन
मम्मियों ने तो उन्हें
प्यार किया और
सुबह-सुबह पढ़ाई
करने के लिये
शाबशी भी दी।
रानी दीदी की गप्प
को वे सच मान
बैठी थीं

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